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इस्लाम

अहिंसा और इस्लाम

वामन शिवराम आप्टे ने ‘संस्कृत-हिन्दी-कोश’ में ‘अहिंसा का अर्थ इस प्रकार किया है—अनिष्टकारिता का अभाव, किसी प्राणी को न मारना, मन-वचन-कर्म से किसी को पीड़ा न देना (पृष्ठ 134)। मनुस्मृति (10-63, 5-44, 6-75) और भागवत पुराण (10-5) में यही अर्थापन किया गया है । ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का वाक्य इसी से संबंधित है । प्रसिद्ध जैन विद्वान श्री वल्लभ सूरी ने अपनी पुस्तक ‘जैनिज़्म’ (Jainism) में ‘अहिंसा’ की व्याख्या इन शब्दों में की है—‘‘जैन धर्म के संतों ने अहिंसा को सदाचार के एक सिद्धांत के रूप में ज़ोर देकर प्रतिपादित किया है । ‘अहिंसा’ की संक्षिप्त परिभाषा यह है कि जीवन सम्मानीय है चाहे वह किसी भी रूप में मौजूद हो । पर एक व्यक्ति कह सकता है कि जीवन के सभी रूपों को हानि पहुंचाने से पूर्णतः बचते हुए संसार में जीवित रहना लगभग असंभव है, इसलिए जैन धर्म विभिन्न प्रकार की हिंसाओं......

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मुंशी प्रेमचंद के विचार इस्लाम के...

मुंशी प्रेमचंद (1880-1936) हिन्दी और उर्दू के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार और विद्वान हैं। उनकी रचनाओं में ज़िन्दगी की सच्चाइयां उजागर होती हैं। इन रचनाओं में समाज और उसकी व्यावहारिकताओं की ठोस व व्यापक ज़मीन से जुड़ी वास्तविकताओं का ऐसा सजीव व प्रभावी चित्रण है, जो एक विवेकशील इन्सान की अंतरात्मा और मन-मस्तिष्क को झंझोड़ कर रख देता है।प्रेमचंद की रचनाएं एक आईना-समान हैं, जो मानव- सभ्यता के चेहरे के गुण और अवगुण ठीक वैसे ही दिखा देती हैं जैसे कि वे वास्तव में हैं।यहां उस आलेख के कुछ अंश प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जो ‘इस्लामी सभ्यता’ के शीर्षक से साप्ताहिक ‘प्रताप’ (दिल्ली) के दिसम्बर 1925 विशेषांक में प्रकाशित हुआ था।इस्लामी सभ्यतान्यायजहां तक हम जानते हैं, किसी धर्म ने न्याय को इतनी महानता नहीं दी जितनी इस्लाम ने। ईसाई धर्म में दया प्रधान है।......

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इस्लाम की वास्तविकता

संसार में जितने भी धर्म हैं, उनमें से अधिकतर का नाम या तो किसी विशेष व्यक्ति के नाम पर रखा गया है या उस जाति के नाम पर जिसमें वह धर्म पैदा हुआ। उदाहरण के रूप में ईसाई धर्म का नाम इसलिए ईसाई धर्म है कि उसका सम्बन्ध हज़रत ईसा (अलैहि॰) से है। बौद्ध धर्म का नाम इसलिए बौद्ध धर्म है कि इसके प्रवर्तक महात्मा बुद्ध थे। ज़रदुश्ती धर्म (Zoroastrianism) का नाम अपने प्रवर्तक ज़रदुश्त (Zoroaster) के नाम पर है। यहूदी धर्म एक विशेष क़बीले में पैदा हुआ, जिसका नाम यहूदा (Judha) था। ऐसा ही हाल दूसरे धर्मों के नामों का भी है, परन्तु इस्लाम की विशेषता यह है कि वह किसी व्यक्ति या जाति से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि उसका नाम एक विशेष गुण को प्रकट करता है जो ‘‘इस्लाम’’ शब्द के अर्थ में पाया जाता है। इस नाम से स्वयं विदित है कि यह किसी व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज नहीं है और न ही किसी विशेष जाति तक सीमित......

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इस्लाम धर्म

हमारे आम देशबंधुओं का सामान्य विचार है कि इस्लाम ‘सिर्फ़ मुसलमानों’ का धर्म है। इसके ‘प्रवर्तक’ हज़रत मुहम्मद साहब हैं जो मुसलमानों के पैग़म्बर, महापुरुष हैं। कु़रआन ‘सिर्फ़ मुसलमानों’ का धर्म ग्रन्थ है। लेकिन सच्चाई इस से भिन्न है। स्वयं मुसलमानों के रवैये और आचार-व्यवहार की वजह से यह भ्रम उत्पन्न हो गया है वरना अस्ल बात तो यह है कि इस्लाम पूरी मानवजाति के लिए है, हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की कृपा और शान्ति हो उन पर) सारे इंसानों के पैग़म्बर, शुभचिन्तक, उद्धारक और मार्गदर्शक हैं और इस्लाम के प्रवर्तक (Founder) नहीं बल्कि इस शाश्वत (Eternal) धर्म के आह्वाहक हैं। क़ुरआन पूरी मानवजाति के लिए अवतरित ईशग्रन्थ है।इस्लाम का अर्थ‘इस्लाम’, अरबी वर्णमाला के मूल अक्षर स, ल, म, से बना शब्द है। इन अक्षरों से बनने वाले शब्द दो अर्थ रखते हैं: एक—शांति, दो—आत्मसमर्पण।......

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इस्लाम समाज में आर्थिक सुद्रढ़ता पैदा...

इस्लाम और इस्लामी समाज पर वैसे तो कई प्रकार के आरोप लगाये जाते है कि इस्लाम और इस्लामी व्यवस्था समाज में व्याप्त समस्याओं का समाधान कर सकने में असफल है। लेकिन सत्य ये है कि वो सभी आरोप निराधार हैं और जिनके समय समय पर इस्लामी विद्वानों द्वारा उनके उचित उत्तर भी दिये गये है। इस्लाम और इस्लामी जीवन व्यवस्था के सम्बंध में एक राय समाज में ये पाई जाती है कि इस्लाम चूंकि एक आसमानी धर्म है इसलिये वो लोगों को संसार से दूरी बनाने की शिक्षा देता है और इस बात की शिक्षा देता है कि लोग गरीबी में जीवन व्यतीत करें और संसार में धन सम्पदा एकत्र करने के पीछे न भागें। इस्लाम तर्क ए दुनिया यानि संसार को त्याग देने की शिक्षा देता है। इस राय पर विश्वास करके बहुत सारे ज्ञानवान लोग इस्लाम और इस्लाम के मानने वाले लोगों पर ये आरोप लगाते हैं कि इस्लाम समाज में आर्थिक रूप से सक्रिय सदस्य......

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इस्लाम समाज में आर्थिक सुद्रढ़ता पैदा...

इस्लाम और इस्लामी समाज पर वैसे तो कई प्रकार के आरोप लगाये जाते है कि इस्लाम और इस्लामी व्यवस्था समाज में व्याप्त समस्याओं का समाधान कर सकने में असफल है। लेकिन सत्य ये है कि वो सभी आरोप निराधार हैं और जिनके समय समय पर इस्लामी विद्वानों द्वारा उनके उचित उत्तर भी दिये गये है। इस्लाम और इस्लामी जीवन व्यवस्था के सम्बंध में एक राय समाज में ये पाई जाती है कि इस्लाम चूंकि एक आसमानी धर्म है इसलिये वो लोगों को संसार से दूरी बनाने की शिक्षा देता है और इस बात की शिक्षा देता है कि लोग गरीबी में जीवन व्यतीत करें और संसार में धन सम्पदा एकत्र करने के पीछे न भागें। इस्लाम तर्क ए दुनिया यानि संसार को त्याग देने की शिक्षा देता है। इस राय पर विश्वास करके बहुत सारे ज्ञानवान लोग इस्लाम और इस्लाम के मानने वाले लोगों पर ये आरोप लगाते हैं कि इस्लाम समाज में आर्थिक रूप से सक्रिय सदस्य......

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इस्लाम और परिवार

इस्लाम परिवार को समाज की बुनियाद घोषित करता है। उसकी दृष्टि में तमाम धर्मों में पारंपरिक प्राकृतिक और शरई विवाह बन्धन ही परिवार की बुनियाद और उसके साकार होने का अकेला तरीक़ा है। इस्लाम आज के युग में अपनाए गए अपारंपरिक रीतियों जैसे समलैंगिक परिवार या समलैंगिक विवाह को रद्द करता है।इसी लिए इस्लाम विवाह पर ज़ोर देता है और इसके तरीक़े को आसान बनाता है। और शिक्षा और क़ानून के द्वारा इसके रास्ते की सामाजिक और आर्थिक रुकावटों को दूर करता है। इस्लाम शादी को मुश्किल बनाने वाली और उसमें देर करने वाली बेबुनियाद परंपराओं की निन्दा करता है जैसे बहुत ज़्यादा मह्र, उपहार, दावत और विवाह समारोह में दिखावा, फर्नीचर, लिबास और साज-सज्जा में फ़ुज़ूलख़र्ची और एक-दूसरे से मुक़ाबला, इस तरह के तमाम ख़र्च को अल्लाह और उसके रसूल नापसन्द करते हैं। इस्लाम वर-वधु दोनों के चयन में दीन......

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इस्लाम और समाज

इस्लाम व्यक्ति एवं समाज के बीच सम्बन्ध को भाईचारे एवं एकता के दृढ़ स्तम्भों पर क़ायम करता है। इसलिए यहां सम्प्रदाय और धर्मों के बीच न कोई कशमकश होती है और न बिरादरी और मसलकों के बीच कोई झगड़ा, सबके सब भाई होते हैं। सब एक अल्लाह के बन्दे और आदम के बेटे हैं।“तुम्हारा रब भी एक है और तुम्हारा बाप भी एक।” (मुसनद अहमद : 22391)हम देख चुके हैं कि इस्लाम समाज के कमज़ोर वर्ग जैसे मज़दूर, किसान, कारीगर और छोटी उम्र के कर्मचारी को, जिनको कमज़ोर समझकर उन पर ध्यान नहीं दिया जाता, विशेष रूप से महत्व देता है। अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने इन्हें महत्वपूर्ण कहा है। अमन की हालत में और युद्ध की हालत में उन्हें मदद करने वाला हथियार बताया है जैसा कि हदीस में है—“तुम्हें अपने कमज़ोरों के कारण ही रोज़ी मिलती है और इनके कारण ही तुम्हारी मदद होती है।” (बुख़ारी : 2681)जाहिलियत के समाज में यह कमज़ोर वर्ग......

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सद्व्यवहार

इस्लाम में सद्व्यवहार का बहुत महत्व है। यहाँ तक अल्लाह ने अपने पैग़म्बर की प्रशंसा करते हुए फ़रमाया—“और निश्चय ही तुम शील स्वभाव के बड़े मरतबे पर हो।” (क़ुरआन, अल-क़लम : 68:4)अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) हम से सम्बोधित होकर अपने कर्तव्य का वर्णन यूँ करते हैं—“मैं शिष्टाचार के गुणों और ख़ूबियों की पूर्ति के लिए नियुक्त किया गया हूँ।”इस्लाम ने इबादतों से सम्बन्धित दायित्वों के, जोकि इस्लाम के स्तम्भ (अरकान) हैं, शिष्टाचार सम्बन्धी उद्देश्य निश्चित किए हैं। इस्लाम चाहता है कि ये उद्देश्य लोगों के जीवन में कार्यान्वित हो सकें। अगर ये उद्देश्य पूरे न हों तो इबादतें विकृत हो जाएँगी और इस क़ाबिल न होंगी कि अल्लाह उन्हें क़बूल फ़रमाए।इसलिए नमाज़ का उद्देश्य निर्लज्जता और बुराई से रोकना है।“निस्सन्देह नमाज़ अश्लील और बुरे कामों से रोकती है।” (क़ुरआन, अनकबूत :......

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इस्लाम और इन्सान

इस्लाम की दृष्टि में इन्सान एक आदरणीय प्राणी है।“यह तो हमारी कृपा है कि आदम की सन्तान को श्रेष्ठता दी।” (क़ुरआन, 17:70)इस धरती को बसाने के लिए उसे ख़लीफ़ा नियुक्त किया गया है।“फिर तनिक उस समय की कल्पना करो जब तुम्हारे प्रभु ने फ़रिश्तों से कहा था कि ‘मैं धरती पर एक ख़लीफ़ा (स्थानापन) बनाने वाला हूं।” (क़ुरआन, 2:30)इन्सान आदरणीय और धरती का ख़लीफ़ा है इसलिए अल्लाह ने उसे सारी सृष्टि का मुखिया बनाया है और सारी सृष्टि को उसकी सेवा के लिए उसके वश में कर दिया है।“क्या तुम लोग नहीं देखते कि अल्लाह ने धरती और आकाशों की सारी चीज़ें तुम्हारे लिए वशीभूत कर रखी हैं।” (क़ुरआन, 31:20)“उसने धरती और आकाशों की सारी ही चीज़ों को तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया।”                                         (क़ुरआन, 45:13)अल्लाह ने इन्सान को......

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मुस्लिम उम्मत - पहचान और विशेषताएं

मुस्लिम उम्मत एक सन्तुलन-प्रिय समुदाय है। .कुरआन में इसका यह गुण बताया गयाµ ‘‘और इसी तरह तो हमने तुम मुसलमानों को एक ‘‘सन्तुलन पर रहने वाला समुदाय‘‘  बनाया है ताकि तुम दुनिया के लोगों पर गवाह हो और रसूल तुम पर गवाह हों।‘‘               (.कुरआन, 2-143)यह एक आस्था और एक सन्देश को थामने वाला समुदाय है। यह समुदाय किसी विशेष वंश से सम्बन्धित नहीं है, न ही यह कोई क्षेत्राीय समुदाय है जो पूर्व या पश्चिम के किसी देश या क्षेत्रा से सम्बन्ध रखता हो। इस समुदाय का सम्बन्ध किसी विशेष भाषा से भी नहीं है। यह एक विश्व समुदाय है जिसके व्यक्ति भिन्न-भिन्न रंग, वंश, भाषा और देश के होने के बावजूद एक आस्था एक शरीअत, साझे की सभ्यता और एक किबला से एक साथ जुड़े हुए हैं। संसार के विभिन्न देशों में फैले हुए इस समुदाय की भिन्न- भिन्न भाषाओं के अतिरिक्त एक विशेष भाषा भी......

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