सद्व्यवहार

सद्व्यवहार

इस्लाम में सद्व्यवहार का बहुत महत्व है। यहाँ तक अल्लाह ने अपने पैग़म्बर की प्रशंसा करते हुए फ़रमाया—

और निश्चय ही तुम शील स्वभाव के बड़े मरतबे पर हो।

(क़ुरआन, अल-क़लम : 68:4)

अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) हम से सम्बोधित होकर अपने कर्तव्य का वर्णन यूँ करते हैं

“मैं शिष्टाचार के गुणों और ख़ूबियों की पूर्ति के लिए नियुक्त किया गया हूँ।

इस्लाम ने इबादतों से सम्बन्धित दायित्वों के, जोकि इस्लाम के स्तम्भ (अरकान) हैं, शिष्टाचार सम्बन्धी उद्देश्य निश्चित किए हैं। इस्लाम चाहता है कि ये उद्देश्य लोगों के जीवन में कार्यान्वित हो सकें। अगर ये उद्देश्य पूरे न हों तो इबादतें विकृत हो जाएँगी और इस क़ाबिल न होंगी कि अल्लाह उन्हें क़बूल फ़रमाए।

इसलिए नमाज़ का उद्देश्य निर्लज्जता और बुराई से रोकना है।

निस्सन्देह नमाज़ अश्लील और बुरे कामों से रोकती है।

(क़ुरआन, अनकबूत : 29:45)

ज़कात का उद्देश्य शुद्धता और पाकीज़गी है।

“तुम उनके मालों में से सदक़ा लेकर उन्हें शुद्धता प्रदान करो और (नेकी की राह में) उन्हें बढ़ाओ।” (क़ुरआन, अत-तौबा : 9:103)

रोज़ा का उद्देश्य परहेज़गारी के गुण उत्पन्न करना है।

इससे आशा है कि तुममें धर्मपरायणता का गुण पैदा होगा।

(क़ुरआन, अल-बक़रा : 2:187)

हज का उद्देश्य बुराइयों, गुनाहों और लड़ाई-झगड़े से बचने की शिक्षा देना है।

“जो व्यक्ति उन निश्चित महीनों में हज्ज का निश्चय करे, उसे सावधान रहना चाहिए कि हज्ज के बीच में उससे कोई काम-वासना कोई सीमोल्लंघन, कोई लड़ाई-झगड़े की बात न होने पाए। (क़ुरआन, अल-बक़रा : 2:197)

अगर इन इबादतों से ये शिष्टाचार सम्बन्धी लाभ हासिल न हों तो रसूल (सल्ल॰) फ़रमाते हैं—

“बहुत से रातों में जागकर इबादत करने वाले ऐसे हैं जिनको रतजगे’ के सिवा कुछ हासिल नहीं होता और बहुत से रोज़ा रखने वाले ऐसे हैं जिनको रोज़े में भूख के सिवा कुछ हासिल नहीं होता।

इसी तरह रसूल (सल्ल॰) ने फ़रमाया है—

“जो व्यक्ति झूठ बोलना और झूठ का पालन करना न छोड़े, अल्लाह को उसका खाना-पीना छुड़ाने की कोई ज़रूरत नहीं। (बुख़ारी : 1770)

इस्लाम शील स्वभाव को वास्तविक ईमान की पूर्ति का साधन बताता है। इसी लिए क़ुरआन में ईमान वालों के निम्न गुण बताए गए हैं।

“जो अपनी नमाज़ में विनम्रता अपनाते हैं, व्यर्थ बातों से दूर रहते हैं, दान की नीति पर चलते हैं, अपने गुप्त अंगों की रक्षा करते हैं, सिवाय अपनी पत्नियों के और उन स्त्रियों के जो यथा-विधि उनकी मिलकियत में हों कि उनपर सुरक्षित न रहने में वे निन्दनीय नहीं हैं, परन्तु जो उसके अतिरिक्त कुछ और चाहें वही ज़्यादती करने वाले हैं, और जो अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखते हैं। (क़ुरआन, मोमिनून : 23:2-8)

सहीह हदीसों में इस बात पर बहुत ज़ोर दिया गया है कि ईमान शील-स्वभाव के गुण से सुसज्जित हो।

“जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो, वो रिश्तेदारों से अच्छा व्यवहार करे।

“जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो वो अपने पड़ोसी को कष्ट न दे।

वो अपने अतिथि का सत्कार करे।

भली बात कहे या चुप रहे। (हदीस : बुख़ारी-5673)

ईमान वाला वो है जिसकी ओर से लोगों के जान और माल सुरक्षित हों।

(हदीस : तिरमिज़ी-2551)

हदीसों में बुराइयाँ और अपराध करने वालों के ईमान को नकारा गया है।

रसूल (सल्ल॰) ने फ़रमाया

“व्यभिचारी ईमान की हालत में व्यभिचार नहीं करता, शराब पीने वाला ईमान की हालत में शराब नहीं पीता। (हदीस : बुख़ारी-2295)

“वो व्यक्ति मुझ पर ईमान नहीं रखता जो ख़ुद तो पेट भर खाकर सोये और उसका पड़ोसी भूखा हो और उसे यह मालूम भी हो। (हदीस : तबरानी-13052)

इस्लाम धर्म में ये शिष्टाचार बुनियादी शिक्षा में शामिल हैं और ये शिक्षा क़ुरआन और रसूल (सल्ल॰) द्वारा दी गई हैं। जिनसे सम्बन्धित क़ुरआन और हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) से आदेश व निषेध वर्णित हैं। अतः शिष्टाचार के सर्वोत्तम गुण अल्लाह की ओर से लागू किए गए कर्तव्य में और आचरण एवं व्यवहार की नीचता अल्लाह की ओर से निषेध किए गए अवैध कर्मों में शामिल हैं।

न्याय, उपकार, सच्चाई, ईमानदारी, वचनबद्धता, जीव-जन्तुओं से सहानुभूति, निर्धनता, दुर्दशा और युद्ध की हालत में इरादे की दृढ़ता, लज्जा, विनम्रता, ईमान पर गर्व, वीरता, दानशीलता, मर्यादा, क्षमा करना, ग़ुस्सा पर क़ाबू, इसी तरह माँ-बाप के साथ सद्व्यवहार, रिश्तेदारों पर ख़र्च करना, पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार, निर्धन, अनाथ, मुसाफ़िर और नौकरों से स्नेह रखना, कमज़ोर की मदद, पीड़ितों को न्याय दिलानाआचार एवं व्यवहार की ये सारी अच्छाइयाँ एवं गुण दीन (धर्म) के आदेश हैं। अल्लाह ने ईमान वालों को इसके उपदेश दिए हैं और इनका पालन करने वालों को सदाचारी और परहेज़गार होने की शुभ-सूचना दी है। जैसा कि क़ुरआन की सूरह अनफ़ल और सूरह मोमिनून के आरम्भ में, सूरह रअद के बीच में और सूरह अल-फ़ुरक़ान के अन्त में इबादुर्रहमान’ (रहमान के विशेष बन्दों) के गुणों के हवाले से, सूरह ज़ारियात में परहेज़गार और नेक लोगों के चरित्र के हवाले से और सूरह मआरिज में भी विस्तार से वर्णन मौजूद है। इन गुणों के विपरीत अत्याचार, झूठ, बेईमानी, धोखा, वचन तोड़ना, क्रूरता, निर्लज्जता, अहंकार, पीठ पीछे बुराइयाँ, परनिंदा, झूठी गवाही, खुले एवं छिपे अपराध करना, नशे का इस्तेमाल, माँ-बाप का अनादर, रिश्तों का ख़याल न रखना, पड़ोसी को कष्ट देना, अनाथ के अधिकारों का हनन, निर्धन एवं मुसाफ़िर के साथ क्रूरता, सत्य, धैर्य एवं सहानुभूति के उपदेश आपस में एक-दूसरे को न देना, बुराइयों को फैलने के लिए छोड़ देना, अत्याचारी को ज़ुल्म से रोकने और उसका हाथ पकड़ने से डरना, ये और इन जैसे तमाम अवगुण इस्लाम में अवैध और घृणित घोषित किए गए हैं। कुछ तो इनमें कबीरा (बड़े) गुनाहों में शामिल हैं। क़ुरआन और हदीस के निम्न उपदेशों से यह प्रमाणित है।

“तुमने देखा उस व्यक्ति को जो परलोक के प्रतिदान और दण्ड को झुठलाता है? वही तो है जो अनाथ को धक्के देता है। (क़ुरआन, अल-माऊन : 107:1-3)

“जिसके दिल में राई बराबर भी अहंकार होगा वो जन्नत में नहीं जाएगा।

(हदीस : मुस्लिम-131)

“एक इन्सान के बुरे होने के लिए इतना पर्याप्त है कि वो अपने मुसलमान भाई को नीचा समझे। (हदीस : मुस्लिम-4650)

हदीस क़ुदसी है

“मैं तमाम निस्पृह हस्तियों से बढ़कर शिर्क (ईश्वर का साझी बनाने) से निस्पृह (बेपरवाह) हूँ। जो कोई ऐसा कर्म करे जिसमें मेरे साथ किसी को साझी बनाए तो उसके सारे कर्म उस साझीदार के लिए ही होंगे। ऐ बन्दो, मैंने अपने ऊपर अत्याचार को अवैध ठहरा लिया है और इसे तुम पर भी अवैध घोषित किया है, इसलिए तुम एक-दूसरे पर ज़ुल्म न करो।” (हदीस : मुस्लिम-4674)

आपसी रिश्तों का बिगाड़ इन्सान को मूँड देता है। (हदीस : तिरमिज़ी-2433)

झूठी गवाही अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराने के बराबर है।

(हदीस : तिरमिज़ी-2223)

”एक औरत केवल इस कारण जहन्नम के दण्ड का पात्र बनी कि उसने एक बिल्ली को बाँध रखा था जिसके कारण वह बिल्ली मर गई।” (हदीस : बुख़ारी-3071)

क्या मैं तुम्हें सबसे दुष्कर बड़ा गुनाह न बताऊँ? अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराना और माँ-बाप की आज्ञा का पालन न करना। फिर आप (सल्ल॰) ने फ़रमाया, जान लो! और झूठ बोलना और झूठी गवाही देना।(हदीस : बुख़ारी-126)

काटने वाला जन्नत में नहीं जाएगा। (हदीस : बुख़ारी-5525)

इस हदीस में काटने वाले से आशय रिश्तों को तोड़ने वाला है इसका एक अर्थ डाकू भी बताया गया है।

जन्नत में परनिंदा करने वाले को प्रवेश नहीं मिलेगा।(हदीस : बुख़ारी-5596)

इस्लामी शिष्टाचार हर विभाग से जुड़ा है। जीवन का कोई मैदान इससे अलग नहीं है। इसके विपरीत दूसरी सभ्यताओं में दर्शनशास्त्र और शिष्टाचार, अर्थशास्त्र और शिष्टाचार, राजनीति और शिष्टाचार तथा युद्ध और शिष्टाचार के बीच अन्तर करते हैं। इस्लाम इन तमाम मामलों को शिष्टाचार से जोड़ता है।

 

इस्लाम इस दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करता कि ‘‘उद्देश्य ज़रिया को वैध बना देता है”, न ही इस्लाम ऊँचे उद्देश्य को पाने के लिए दुष्ट और अनैतिक ज़रिया के इस्तेमाल को वैध ठहराता है। इस्लाम पवित्र ज़रिया से बुलन्द उद्देश्य तक पहुँचता है। वह किसी हाल में भी झूठ के रास्ते से सत्य तक पहुँचने को उचित नहीं ठहराता। रिश्वत, सूद और अवैध संग्रह के माल से मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। ‘‘अल्लाह पवित�

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