नारी जगत
वस्तुस्थिति पर एक दृष्टिनारी-जाति आधी मानव-जाति है। पुरुष-जाति की जननी है। पुरुष (पति) की संगिनी व अर्धांगिनी है। नबी, रसूल, पैग़म्बर, ऋषि, मुनि, महापुरुष, चिंतक, वैज्ञानिक, शिक्षक, समाज-सुधारक सब की जननी नारी है, सब इसी की गोद में पले-बढ़े। लेकिन धर्मों, संस्कृतियों, सभ्यताओं, जातियों और क़ौमों का इतिहास साक्षी है कि ईश्वर की इस महान कृति को इसी की कोख से पैदा होने वाले पुरुषों ने ही बहुत अपमानित किया, बहुत तुच्छ, बहुत नीच बनाया; इसके नारीत्व का बहुत शोषण किया; इसकी मर्यादा, गरिमा व गौरव के साथ बहुत खिलवाड़ किया, इसके शील को बहुत रौंदा; इसके नैतिक महात्म्य को यौन-अनाचार की गन्दगियों में बहुत लथेड़ा। ● प्राचीन यूनानी सभ्यता में एक काल्पनिक नारी-चरित्रा पांडोरा (Pandora) को इन्सानों की सारी मुसीबतों की जड़ बताया गया। इस सभ्यता के आरंभ में तो स्त्री को अच्छी हैसियत भी ......
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