ख़ुराफ़ात के पास से वे जब गुज़रते हैं...
ख़ुराफ़ात, बकवास, बेहूदगी चाहे ज़ुबान से हो, मन-मस्तिष्क में उभरे, अमल, चरित्र व किरदार से सामने आए, अपने आप में बुरी ही होती हैं। फिर चाहे 'स्वार्थ' इसे गले लगाए या इसके ज़रिए नुक़सान पहुंचाने की योजना बनाने में लग जाए। चाहे ताक़तवर इसका इस्तेमाल दूसरों को नीचा दिखाने या कोई इसकी मदद से किसी को ज़लील करने की कोशिश करे। इस समय की बड़ी समस्या यह है कि हर तरफ़ का चलन है। चाहें तो चारों ओर आंख उठा कर देख लें। देश के किसी भी कोने में जहां कुछ लोग जमा हों वहां से सिर्फ़ निकर जाईए शायद ही कभी ऐसा हो कि आपको कुछ बकवास, ख़ुराफ़ात और बेहूदगी सुनाई या दिखाई न दे। छोटे छोटे बच्चे इन बातों को देखकर प्रभावित हो रहे हैं। उनके मन-मस्तिष्क उनसे गंदे हो रहे है। वे उन्हें अपना रहे हैं, उन्हें अपने मुंह से निकाल रहे हैं। गलियों, चौराहों, घरों, दुकानों, स्कूलों, कॉलेजों और खेल के मैदानों में......
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