कर्म, पुनरुज्जीवन और इस्लाम
मनुष्य को इस लोक में अपने अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा-पूरा पुरस्कार एवं दंड नहीं मिल सकता। इसके लिए परलोक का होना अनिवार्य है। विश्व के सभी बड़े धर्मों में परलोक की धारणा पाई जाती है। इस्लाम की शब्दावली में पारलौकिक जीवन को ‘आख़िरत’ कहते हैं।इस्लाम की यह धारणा है कि मनुष्य का यह जीवन उसकी परीक्षा की घड़ी है। यह नश्वर जगत है, जिसका एक दिन विनाश निश्चित है। शाश्वत जीवन तो ‘आख़िरत’ (परलोक का जीवन) है। मनुष्य का यह जीवन शाश्वत जीवन के लिए तैयारी का अवसर जुटाता है। यदि मनुष्य अपने जीवन को ईश्वरीय आदेशों के अनुरूप बनाता है, एकेश्वरवाद, ईशदूतत्व, पारलौकिक जीवन आदि मौलिक धारणाओं को स्वीकार करता है एवं सत्कर्मों में लगा रहकर जीवन व्यतीत करता है, तो उसके लिए अच्छा बदला है और वह जन्नत (स्वर्ग) का पात्र होगा। वहां उसे वास्तविक जीवन, सुख-शान्ति और अमरता प्राप्त होगी। वह इस......
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