आख़िरत के दिन पर ईमान
मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है बल्कि इन्सान हमेशा रहने के लिए पैदा किया गया है। मृत्यु तो उसे एक स्थान से दूसरे स्थान अर्थात् परीक्षा केन्द्र से बदला पाने के केन्द्र तक पहुंचाने का माध्यम है। आज कर्म करने की छूट है पूछताछ नहीं, कल हिसाब होगा, कर्म करने की छूट नहीं होगी। अन्तिम जीवन में हर व्यक्ति को अपने कर्मों का बदला मिलेगा और अपने कर्मों के अनुसार ही नया जीवन प्राप्त कर वह हमेशा-हमेशा रहेगा।
“उस दिन लोग विभिन्न दशा में पलटेंगे ताकि उनके कर्म उनको दिखाए जाएं। फिर जिस किसी ने कण बराबर नेकी की होगी वह उसको देख लेगा। और जिसने कण बराबर बुराई की होगी वह उसको देख लेगा।” (क़ुरआन, 99:6-8)
तमाम ईश्वरीय धर्मों ने आख़िरत पर ईमान, पुरस्कार एवं दण्ड और स्वर्ग व नरक की शिक्षा दी है। इस्लाम ने विशेष रूप से मृत्यु के पश्चात जीवन के विषय को क़ुरआन का एक केन्द्र बिन्दु बनाया है।
इस्लाम ने अरब के उन बहुदेववादियों से विवाद किया है जो मृत्यु के पश्चात जीवन को असंभव समझते थे। अतः क़ुरआन उन्हें सम्बोधित करते हुए स्पष्ट करता है।
“वही है जो सृष्टि का आरम्भ करता है, फिर वही उस की पुनरावृत्ति करेगा और यह उसके लिए अधिक सरल है।” (क़ुरआन, 30:27)
अल्लाह ने धरती और आकाशों को पैदा किया है वह इन जैसों को पैदा करने की अवश्य सामर्थ्य रखता है।” (क़ुरआन, 17:99)
क़ुरआन बताता है कि महानता, ज्ञान और सामर्थ्य के गुणों से परिपूर्ण प्रभु की तत्वदर्शिता अपेक्षा करती है कि सृष्टि की यह बिसात यूं ही न लपेट दी जाए कि हत्यारा, उपद्रवी, अत्याचारी, विद्रोही अपने किए के दण्ड से बच जाएं और पीड़ितों को उनका हक़ न मिले।
अल्लाह फ़रमाता है—
“हमने इस आकाश और धरती को और इस दुनिया को जो इनके बीच है, व्यर्थ पैदा नहीं कर दिया है। यह तो उन लोगों का अनुमान है जिन्होंने इन्कार किया है और ऐसे इन्कार करने वालों के लिए विनाश है नरक की आग से। क्या हम उन लोगों को जो ईमान लाते और अच्छे कर्म करते हैं और उनको जो धरती में बिगाड़ पैदा करने वाले हैं समान कर दें? (क़ुरआन, 38:27,28)
अल्लाह फ़रमाता है—
“क्या तुमने यह समझ रखा था कि हमने तुम्हें व्यर्थ ही पैदा किया है और तुम्हें हमारी ओर कभी पलटना ही नहीं है? तो सर्वोच्च है अल्लाह, वास्तविक सम्राट, कोई पूज्य प्रभु उसके सिवा नहीं, स्वामी है, महिमाशाली सिंहासन का।” (क़ुरआन, 23:115)
इस्लाम का दृष्टिकोण यह है कि यदि पुरस्कार व दण्ड के लिए मृत्यु के पश्चात कोई जीवन न हो तो इन्सान की रचना व्यर्थ निरर्थक और तत्वदर्शिता के विरुद्ध होगी। भौतिकवादियों और नास्तिकों की यही धारणा है। उनका कहना है कि हमारा सम्बन्ध केवल जीवन और मृत्यु से है और समय हमारा अन्त कर देता है। यह बस धरती है जो इन्सान को निगल लेती है और उसके बाद कुछ नहीं रहता।
अगर जीवन का अन्त और इसकी उपलब्धि यही है तो कितना तुच्छ और व्यर्थ है यह जीवन!!
क़ुरआन ने बहुदेववादियों के इस दृष्टिकोण को रद्द किया है जो मृत्यु के पश्चात जीवन का इन्कार करते थे और अल्लाह के लिए यह असम्भव समझते थे कि वह सड़ी-गली हड्डियों में दोबारा जान डाल देगा। क़ुरआन ने उन लोगों की आस्था को भी रद्द किया है जो अल्लाह की न्याय एवं तत्वदर्शिता पर आधारित व्यवस्था से अंधे होकर यह समझते हैं कि इस जीवन का यूं ही अन्त हो जाएगा और नेकी करने वालों को उनकी नेकी का और बुरे कर्म करने वालों को उनके बुरे कर्मों का कोई बदला नहीं मिलेगा जैसे कि इस सृष्टि का कोई निरीक्षक और प्रबंधक सिरे से हो ही नहीं।
क़ुरआन उन लोगों के विचार को भी रद्द करता है जो ये समझे बैठे हैं कि आख़िरत में उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश लाभ पहुंचाएगी। उनके सिफ़ारिशी अपनी पहुंच व प्रभाव से न्याय के क़ानून को प्रभावहीन कर देंगे। इसी तरह यह कि कुछ लोग अत्याचार और जघन्न अपराध करेंगे फिर इनके झूठे देवता, जिन्हें ये ख़ुदा को छोड़कर पूजते रहे हैं या इनके धर्मगुरु, जिनको इन्होंने अपने और ख़ुदा के बीच माध्यम बना रखा था, इनके लिए सिफ़ारिशें करेंगे। यही भ्रम बहुदेववादियों और कुछ ‘किताब वालों’ को भी था। क़ुरआन ने स्पष्ट विवरण देकर इस निराधार दावे को ग़लत ठहराया है।
क़ुरआन का विवरण है—
“जो कोई अच्छा कर्म करेगा अपने ही लिए अच्छा करेगा, जो बुराई करेगा उसका वबाल उसी पर होगा, और तेरा प्रभु अपने बन्दों के हक़ में ज़ालिम नहीं है।” (क़ुरआन, 41:46)
“जो कोई सीधा मार्ग अपनाए उसका सीधे मार्ग को अपनाना उसके अपने ही लिए लाभकारी है, और जो पथ-भ्रष्ट हो उसकी पथ-भ्रष्टता का वबाल उसी पर है। (परलोक-जीवन में) कोई बोझ उठाने वाला दूसरे का बोझ न उठाएगा।” (क़ुरआन, 17:15)
“कौन है जो उसके यहां (परलोक में) उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके?’’
(क़ुरआन, 2:255)
“आकाशों में कितने ही फ़रिश्ते मौजूद हैं, उनकी सिफ़ारिश कुछ भी काम नहीं आ सकती जब तक कि अल्लाह किसी व्यक्ति के हक़ में उसकी अनुमति न दे जिसके लिए वह कोई प्रार्थना सुननी चाहे और उसको पसन्द करे।” (क़ुरआन, 53:26)
“वे किसी की सिफ़ारिश नहीं करते सिवाय उसके जिसके हक़ में सिफ़ारिश सुनने पर अल्लाह राज़ी हो।” (क़ुरआन, 21:28)
अपराधी बहुदेववादियों के बारे में क़ुरआन कहता है—
“उस समय (परलोक में) सिफ़ारिश करने वालों की कोई सिफ़ारिश उनके किसी काम न आएगी।” (क़ुरआन, 47:48)
क़ुरआन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सिफ़ारिश हर व्यक्ति के लिए नहीं है। अतः ऐसे लोग जिन्होंने (शिर्क) अल्लाह के साथ किसी को साझी बनाया हो या (कुफ़्र) अल्लाह का इन्कार किया हो, और उनकी मृत्यु उसी हालत में हुई हो, तो अल्लाह ऐसे लोगों के लिए किसी को सिफ़ारिश करने की अनुमति नहीं देगा। यदि कोई ऐसी सिफ़ारिश करेगा भी तो वह रद्द कर दी जाएगी। क्योंकि सिफ़ारिश सिर्फ़ ईमान वालों और एक अल्लाह पर आस्था रखने वालों के छोटे-मोटे गुनाहों के हक़ में लाभ पहुंचाएगी।
आख़िरत में कर्मों की किताब लाई जाएगी और तुला स्थापित की जाएगी। हर व्यक्ति अपने कर्मों का लेखा पढेगा।
“पढ़ अपना कर्म-पत्र, आज अपना हिसाब लगाने के लिए तू स्वयं काफ़ी है।”
(क़ुरआन, 17:14)
“और कर्म-पत्र सामने रख दिया जाएगा। उस समय तुम देखोगे कि अपराधी लोग अपने जीवन पुस्तक की अंकित बातों से डर रहे होंगे और कह रहे होंगे कि ‘‘हाय हमारा दुर्भाग्य, यह कैसी पुस्तक है कि हमारी कोई छोटी-बड़ी हरकत ऐसी नहीं रही जो इसमें अंकित न हो गई हो। जो कुछ उन्होंने वह सब अपने सामने मौजूद पाएंगे और तेरा प्रभु किसी पर तनिक ज़ुल्म न करेगा।” (क़ुरआन, 18:49)
“जब हर प्राणी अपने किए का फल मौजूद पाएगा चाहे उसने भलाई की हो या बुराई। उस दिन मनुष्य यह कामना करेगा कि क्या ही अच्छा होता कि अभी यह दिन उससे बहुत दूर होता।” (क़ुरआन, 3:30)
“यहां इन्सान को उसका कर्म मिलेगा और वो उसे अपने सामने देखेगा। यह हमारा तैयार किया हुआ कर्म-पत्र है जो तुम्हारे ऊपर ठीक-ठीक गवाही दे रहा है।”
(क़ुरआन, 45:29)
इस तरह ये कर्मों का लेखा-जोखा लोगों के सामने सच्चाई ले आएगा और तुला न्याय के साथ फ़ैसला सुनाएगी।
“पुनरुज्जीवन के दिन हम ठीक-ठीक तौलने वाले तराज़ू रख देंगे, फिर किसी पर तनिक भर ज़ुल्म न होगा। जिसका राई के दाने के बराबर भी कुछ किया धरा होगा वह हम सामने ला देंगे। और हिसाब लगाने के लिए हम काफ़ी हैं।” (क़ुरआन, 21:47)
इसके बाद तमाम लोग तीन श्रेणियों में विभाजित कर दिए जाएंगे।
1. साबिक़ीन मुक़र्रबीन—आगे रहने वाले,
2. असहाबुल यमीन—दाएं वाले,
3. असहाबुश शमाल—बाएं वाले
अल्लाह ने सूरह वाक़िआ में इन तीनों गिरोहों का वर्णन इस तरह किया है—
“फिर वह मरने वाला यदि समीपियों में से हो तो उसके लिए सुख और उत्तम आजीविका और नेमत भरी जन्नत है। और यदि वह दाएं पक्ष वालों में से हो, तो उसका स्वागत यूं होता है कि सलाम है तुझे, तू दाएं पक्ष वालों में से है और यदि वह झुठलाने वाले गुमराह लोगों में से हो, तो उसके सत्कार के लिए खौलता हुआ पानी है और नरक में झोंका जाना। यह सब कुछ विश्वस्त सत्य है, अतः हे नबी अपने महान प्रभु के नाम की तसबीह करो।” (क़ुरआन, 156:88-95)
स्वर्ग (जन्नत) में तरह-तरह की भौतिक व आत्मिक नेमतें होंगी जिनको न किसी आंख ने कभी देखा होगा न कसी कान ने कभी उनके बारे में कुछ सुना होगा न कभी किसी इन्सान के दिल में उनका ख़याल आया होगा।
“फिर जैसा कुछ आंखों की ठण्डक का सामान उनके कर्मों के बदले में उनके लिए छिपा रखा गया है उसकी किसी प्राणवान को ख़बर नहीं है।” (क़ुरआन, 32:17)
“इन ईमान वाले पुरुषों और ईमान वाली स्त्रियों से अल्लाह का वादा है कि उन्हें ऐसे बाग़ देगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी और वे उनमें सदैव रहेंगे। उन सदाबहार बाग़ों में उनके लिए पवित्र गृह होंगे, और सबसे बढ़कर यह कि अल्लाह की प्रसन्नता उन्हें प्राप्त होगी। यही बड़ी सफलता है।” (क़ुरआन, 9:72)
दूसरी ओर नरक (जहन्नम) में तरह-तरह की भौतिक और आत्मिक यातनाएं होंगी जिनका वर्णन क़ुरआन ने किया है और ईमान वालों को उनसे ख़बरदार करके उनका भय दिलाया है।
“बचाओ अपने आपको और अपने लोगों को उस आग से जिसका ईंधन मनुष्य और पत्थर होंगे, जिस पर प्रखर स्वभाव के कठोर फ़रिश्ते नियुक्त होंगे जो कभी अल्लाह के आदेश की अवहेलना नहीं करते और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।” (क़ुरआन, 66:6)
“जब उनके शरीर की खाल जल जाएगी तो उसकी जगह दूसरी खाल पैदा कर देंगे ताकि वे अच्छी तरह यातना का मज़ा चखें।” (क़ुरआन, 4:56)
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