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इबादत

इबादत

इबादत‘इबादत’ का अर्थ वास्तव में बन्दगी और दासता है। आप अब्द (बन्दा, दास) हैं। ईश्वर आपका प्रभु और उपास्य है। दास अपने उपास्य और प्रभु के लिए जो कुछ करे वह इबादत है, जैसे आप लोगों से बातें करते हैं, इन बातों के दौरान यदि आप झूठ से, परनिन्दा से, अश्लीलता से इसलिए बचें कि ईश्वर ने इन चीज़ों से रोका है और सदा सच्चाई, न्याय, नेकी और पवित्राता की बातें करें, इसलिए कि ईश्वर इनको पसन्द करता है तो आपकी ये सब बातें ‘इबादत’ होंगी, भले ही वे सब दुनिया के मामले ही में क्यों न हों। आप लोगों से लेन-देन करते हैं, बाज़ार में क्रय-विक्रय करते हैं, अपने घर में माता-पिता और भाई-बहनों के साथ रहते-सहते हैं, अपने मित्रों और सम्बन्धियों से मिलते-जुलते हैं। यदि अपने जीवन के इन सारे मामलों में आपने ईश्वर के आदेश को और उसके क़ानून को ध्यान में रखा, हर एक का हक़ अदा किया, यह समझ कर कि अल्लाह ने इसका......

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अज़ान और नमाज़

अज़ानएक मुसलमान के लिए नमाज़ का महत्व इतना अधिक है कि वह सब कुछ छोड़ सकता है, परन्तु नमाज़ नहीं छोड़ सकता। वह सदैव नमाज़ से जुड़ा रहे और कभी भूल से भी इसे न छोड़े इसके लिए ईश्वर ने ‘अज़ान’ के रूप में एक शक्तिशाली प्रणाली को नमाज़ से जोड़ दिया है। इसमें नमाज़ का समय हो जाने की घोषणा एक अनोखे अंदाज़ में समय से पूर्व ही कर दी जाती है और हर कोई जान लेता है कि नमाज़ का समय हो गया है। अज़ान का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है—अल्लाह सबसे महान है।अल्लाह सबसे महान है।मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई इलाह (पूज्य, उपास्य) नहीं है, मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई इलाह (पूज्य, उपास्य) नहीं है।मैं गवाही देता हूं कि (हज़रत) मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के रसूल (ईशदूत) हैं,मैं गवाही देता हूं कि (हज़रत) मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के रसूल (ईशदूत) हैं।आओ नमाज़ की ओर,आओ नमाज़ की ओर,आओ सफलता की ओर,आओ......

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रोज़ा क्या और क्यों?

इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड और इंसान का अल्लाह (ईश्वर) एक है। ईश्वर ने इंसान को बनाया और उसकी सभी आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रबंध किया। इंसान को इस ग्रह पर जीवित रहने के लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम दिया। इंसान को उसके मूल प्रश्नों का उत्तर भी बताया।इंसान को क्या कोई बनाने वाला है? अगर है, तो वह क्या चाहता है? इंसान को पैदा क्यों किया गया? इंसान के जीवन का उद्देश्य क्या है? अगर है, तो उस उद्देश्य को पाने का तरीक़ा क्या है? इंसान को आज़ाद पैदा किया गया या मजबूर? अच्छी ज़िन्दगी कैसे गुज़ारी जा सकती है? मरने के बाद क्या होगा? इत्यादि। यह इंसान के बुनियादी सवाल हैं, जिनका जानना उसके लिए बहुत ज़रुरी है।इंसानों में से ईश्वर ने कुछ इंसानों को चुना, जो पैग़म्बर (ईशदूत) कहलाए। उन्हें अपना सन्देश भेजा, जो सभी इंसानों के लिए मार्गदर्शन है। पहले इंसान व पैग़म्बर हज़रत आदम (अलैहि॰) से......

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रमज़ान : एक प्रशिक्षण

ईश्वर की भक्ति में लीन होकर मनुष्य उसके प्रति अपने समर्पण को व्यक्त करने के लिए सदैव से तप और उपवास करता आ रहा है। यही कारण है कि समस्त धर्मों में भक्ति का यह रूप पाया जाता है कि मनुष्य कुछ समय के लिए खान-पान से स्वयं को अलग करके अपने आपको उसकी उपासना में लीन कर देता है। ईसाई हों या यहूदी, हिन्दू हों या पारसी, समस्त धर्मों में यह प्रथा पाई जाती है।ईश्वर ने जब इस्लाम को समस्त मानवजाति के लिए मार्गदर्शन बनाकर अपने अंतिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के माध्यम से क़ुरआन के रूप में भेजा, तो उसने मुसलमानों को इस सत्य से अवगत भी कराया कि तुमसे पूर्व के लोगों पर भी रोज़े अनिवार्य किए गए थे।‘‘ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, तुम्हारे लिए रोज़े अनिवार्य कर दिए गए, जिस तरह तुमसे पहले नबियों के अनुयायियों के लिए अनिवार्य किए गए थे। इससे उम्मीद है कि तुममें तक़वा (ईश्परायणता) पैदा ......

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रोज़ों का आध्यात्मिक, नैतिक और...

रोज़ा इस्लाम के पाँच मूल-स्तंभों में से एक है। जो इसकी अनिवार्यता को नकार दे, वह इस्लाम से स्वतः निष्कासित हो जाता है। भोर से संध्या तक ‘अन्न, जल, यौन क्रिया’ छोड़े रहना इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया कि इस्लाम पर “बरक़रार रहना” इस “छोड़े रहने” पर आश्रित हो जाए ? इस प्रश्ना का सादा सा जवाब यह है कि प्रत्यक्षतः खान-पान एवं यौन-क्रिया को तज देने की यह प्रक्रिया इंसान के व्यक्ति त्व से लेकर संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को सुधारने और मज़बूत बुनियादों पर निर्मित करने का एक अद्भुयत ईश्वसरीय प्रयोजन है। यह हर ग्यारह महीने बाद क्रियाशील होता है और एक महीने की तपस्या से हर व्यक्तिए को गुज़ारकर अगले ग्यारह महीनों तक उत्तम नैतिक आधारों पर समाज को बनाने और चलाने का प्रावधान कर जाता है। इस्लाम में रोज़े का इतना महत्वपूर्ण स्थान इसलिए है कि यह एक ही समय में व्यक्तिन......

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ज़कात: ग़रीबी उन्मूलन का एक सत्यापित...

गरीबी एक ऐसी चुनौती है जिसका सामना मानव जाति को लगभग सदा से रहा है और आज भी है। पिछली कई दहाइयों में ग़रीबी उन्मूलन के अनेक विश्वयापी प्रयत्नों के उपरान्त भी समाज से ग़रीबी को दूर नहीं किया जा सका है और निरन्तर इसका विस्तार होता जा रहा है। यह अब मात्र कुछ पिछड़े देशों तक ही सीमित नहीं रह गई है बल्कि इसकी चपेट में अब विकासशील और विकसित देश भी आने लगे हैं। इसी के साथ अमीरी और ग़रीबी के बीच की खाई दिन-प्रतिदिन चौड़ी होती जा रही है जिसमें अमीर अधिक अमीर और गरीब अधिक गरीब होता जा रहा है। इस समय पूरे विश्व में फ़ैली कोरोना महामारी ने यह ख़तरा उत्पन्न कर दिया है कि, रोज़गार और आमदनी के अभाव में, गरीबों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो सकती है। ग़रीबी की परिभाषा समय के साथ परिवर्तित होती रही है। विश्व बैंक गरीब उसे मानता है जिसकी प्रतिदिन की अवसत आय 1.9 डॉलर (वर्तमान दर के अनुसार 144/-......

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रमज़ान का परिचय और रोज़े का महत्व

इस्लामी कैलेंडर का 9वां महीना ‘रमज़ान’ कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। ईश्वर ने अपना अंतिम मार्गदर्शन ‘क़ुरआन’ इसी महीने में समस्त मानवजाति को समर्पित किया। क़ुरआन इन्सानों को दुनिया में जीवन बिताने का तरीक़ा सिखता है। यह मानवजाति पर इतना बड़ा उपकार है कि इसके शुक्र के तौर पर मनुष्य को रोज़ा रखने का आदेश दिया गया। रमज़ान और क़ुरआन के इसी संबंध के चलते रमज़ान में क़ुरआन पढ़ने और सुनने का विशेष आयोजन किया जाता है। क़ुरआन चूंकि समस्त मानवजाति के लिए मार्गदर्शन है, इसलिए उसका यह अधिकार है कि उसे उन लोगों तक पहुंचाया जाए, जिन लोगों तक क़ुरआन की शिक्षाएं अभी तक नहीं पहुंची हैं।रमज़ान का सीधा संबंध ‘रोज़ों’ से है। रोज़ा फ़ारसी भाषा का शब्द है, जो ‘रोज़’ (दिन) से बना है। अर्थात् वह इबादत जो पूरे दिन की होती है। सूर्योदय से कोई सवा घंटे पहले से लेकर, जब आकाश में भोर का पहला......

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इबादतें

अल्लाह ने ऐसे मनुष्य पैदा किए जो कि अपने स्रष्टा और सच्ची नेमतें देने वाले रब की बन्दगी कर सकें। अल्लाह ने इन्सानों को बड़ी-बड़ी नेमतें दी हैं। ज़िन्दगी की नेमत, बुद्धि की नेमत, बोलने की नेमत, इन्सानों के हित के लिए पूरे संसार को वशीभूत कर देने की नेमत, रसूलों को नियुक्त करने की नेमत और उनपर किताबें अवतरित करने की नेमत। वे तमाम नेमतें जिनके आधार पर संसार में जीवन है, अल्लाह ने ही प्रदान की हैं।“तुमको जो सुख सामग्री एवं नेमत प्राप्त है अल्लाह ही की ओर से है।” (क़ुरआन, अन-नह्ल : 16:53)“यदि तुम अल्लाह की नेमतों की गणना करना चाहो तो नहीं कर सकते।” (क़ुरआन, अन-नह्ल : 16:18, इबराहीम : 14:34)इसी कारण उस महामयी रब का जिसने पैदा किया और बिल्कुल ठीक और दुरुस्त बनाया। वही सर्वोच्च प्रभु इस बात का अधिकारी है कि उसके बन्दे केवल उसी की उपासना करें कि यही उनके जन्म का उद्देश्य है।“जिसने......

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