तलाक़ : औरत पर ज़ुल्म?
‘‘इस्लाम में तलाक़ का प्रावधान है जो व्यक्तिगत स्तर पर पत्नी पर, और सामाजिक स्तर पर नारी-जाति पर अत्याचार है। व्यापक क्षेत्र में यह लिंग-समानता (Gender Equality) के भी विरुद्ध है क्योंकि औरत को, तलाक़ देने का हक़ प्राप्त नहीं है; इस प्रकार, कुल मिलाकर यह नारी-अधिकार-हनन भी है।’’●●●इस्लाम वास्तव में एक संपूर्ण जीवन व्यवस्था है। व्यक्तिगत, दाम्पत्य, पारिवारिक और सामाजिक, सारे पहलू तथा इनके वैचारिक, धार्मिक आध्यात्मिक, नैतिक, भावनात्मक तथा आर्थिक और क़ानूनी एवं न्यायिक...सारे आयाम एक दूसरे से अभाज्य रूप से संबद्ध, संलग्न और इस प्रकार अन्तर्संबंधित कि जीवन के किसी एक विशेष अंग, अंश, पक्ष या आयाम को ‘समग्रता’ (Totality) से अलग करके नहीं समझा जा सकता। उपरोक्त भ्रम या आक्षेप, ‘समग्रता’ से ‘अंश’ को पृथक (Isolate) करके देखने से पैदा होते हैं। आक्षेप का एक कारण यह भी है कि ‘कुछ......
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