सड़क हादसे: ‘ज़मीन पर धीरे चलने’ का असर

सड़क हादसे: ‘ज़मीन पर धीरे चलने’ का...

दुनिया में हरकत खुली हुई सच्चाई है, इसका खुला हुआ सबूत नदी का बहना, समय की रफ़्तार,गति और खुद इंसान के जीवन का आगे बढ़ते रहना है। लेकिन इस हरकत का फ़ायदा और नुक़सान, अच्छाई और बुराई इस बात पर निर्भर करती है कि यह कैसी और कितनी तेज़ है। यही कारण है कि दुनिया के सभी लोगों, समुदायों और समाजों ने इसके संबंध में कुछ न कुछ नियम बनाए हैं। इस के बावजूद इससे होने वाली तबाही पर लगाम नहीं लग पाई है। कारण साफ है कि आम तौर पर लोगों को तेज़ गति पसंद होती है और धीमी गति अच्छी नहीं लगती है। बात यह है कि लोगों को धीमी गति की वजह से चीजों के बिगड़ जाने, अवसरों के हाथ से निकल जाने और अपने मक़सद में असफल होने का डर सताता रहता है। इसे इंसान के आलसी, बीमार और लापरवाह होने की निशानी के रूप में भी देखा जाता है। आम तौर पर, समाज ऐसे इंसान को पसंद भी नहीं करता है जिस की चाल धीमी हो। इसकी जगह तेज़ रफ़्तार को पसंद किया जाता है। विज्ञान की दुनिया का मानना है कि वे रफ़्तार के एक ऊंचे मक़ाम पर पहुंच गई है। उस पर दिन-रात फ़ख़र भी किया जाता है।
रफ़्तार को कारोबारी सोच ने ग्लैमराइज़ कर दिया है। विज्ञापनों में तेज़ गति से चलने वाली और फर्राटे भरती हुई गाड़ियों की नुमाइश की जाती है। तारीफी और आकर्षक तरीके से इस का प्रचार किया जाता है। रफ़्तार को ग्लैमराइज़ करने और कारोबारी सोच से प्रभावित होने के नकारात्मक नतीजों को सड़क हादसों से आसानी से समझा जा सकता है जो अनगिनत मौतों और तबाही की शकल में सामने आ रहे हैं। तेज़ रफ़्तार भी बड़े-बड़े, दिल दहला देने वाले हादसों और खतरों की वजह बनती है। दुनिया मानती है कि लोगों की मौत, उन के ज़ख़्मी होने और संपत्ति को नुक़सान पहुंचने की एक अहम वजह सड़क हादसे हैं। इस की वजह से पूरी दुनिया परेशान है और समस्याओं का सामना कर रही है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन के एक अंदाज़े के मुताबिक़ लगभग 1.3 मिलियन आदमी इसकी वजह से मरते हैं। ख़ुद हमारा मुल्क हिन्दुस्तान भी इस समस्या से जूझ रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, मुल्क में 2021 में 155,622 मौतें हुईं, जो 2014 के बाद सबसे ज़्यादा हैं। वर्ल्ड बैंक ने भी एक रिपोर्ट में कहा था कि दुनिया में 11% सड़क हादसों के साथ हिन्दुस्तान टॉप पर है जहां हर घंटे 53 सड़क हादसे होते हैं और हर चार मिनट में इस की वजह से एक मौत होती है।
यह भी सच है कि हमारे मुल्क में सड़क हादसों पर क़ाबू पाने की कोशिश जारी है और इसके अच्छे नतीजे भी सामने आए हैं। पीआईबी की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि 1970 में प्रति 10,000 गाड़ियों पर हादसों का अनुपात 814 था, जो 2020 में कम हो कर 15 हो गया है। तेज़ रफ़्तारी के मुसबत और मनफ़ी नतीजों पर ग़ौर करते वक़्त यह ध्यान रखना चाहिए कि जल्दी और इमरजेंसी इंसान को हर समय नहीं, कभी-कभी और किसी किसी मौक़े पर होती है। फिर भी लोग रफ़्तार के दीवाने नज़र आते हैं। ख़ासकर नौजवान पीढ़ी इस मामले में किसी की बात सुनने को तैयार नहीं है। वह किसी ज़रूरत से नहीं, बग़ैर ज़रूरत के ही घंटों की यात्रा मिनटों में नहीं सेकेंडों में करना चाहती है। लेकिन होता इसके उल्टा ही है और कई बार तो बहुत उल्टा और बुरा हो जाता है। तेज़ रफ़्तारी से होने वाले नुक़सान का ख़ामियाज़ा सिर्फ जल्दबाज़ी करने और तेज़ रफ़्तारी के शौक़ीन ही नहीं, बल्कि उनके घरवालों को बहुत दिनों तक क्या ज़िंदगी भर भुगतना पड़ता है। इसलिए इसके पीछे की मानसिकता को समझने की सख़्त ज़रूरत है।
आज के नौजवानों की भाषा में यह सिर्फ ‘शो ऑफ’ की वजह से है। दिखावे की यह सोच ख़ुद के कुछ अलग होने, अलग करने या अपने पास कुछ ऐसा हो ने जो दूसरों के पास नहीं है,के एहसास से पैदा होती है। यह अकड़, अहंकार, घमंड, और बड़ाई की सोच है और इस्लाम लोगों को इस सोच से रोकता है। इस्लाम में अकड़ कर चलने से सख़्ती से रोका गया है। वे आने जाने और लोगों की चाल फेर में इसे पसंद नहीं करता है। अल्लाह का हुक्म है कि अकड़ कर और घमंड के साथ ना चला जाए। “ज़मीन में अकड़ कर ना चल, तु ना ज़मीन को फाड़ सकता है और ना लंबाई में पहाड़ों को पहुंच सकता है। इन सभी कामों की बुराई  तेरे रब को (बहुत) नापसंद है”(इस्रा: 37-38)। अल्लाह तआला ने यह कह कर कि ‘तु ना ज़मीन को फाड़ सकता है और ना लंबाई में पहाड़ों को पहुंच सकता है’ इंसान की सच्चाई को साफ कर दिया है कि वह न तो असीमित शक्ति और बड़ाई का मालिक है और न ही जिस्मानी तौर पर पहाड़ जैसी क़द कांठी का है। अल्लाह ने अकड़ और घमंड की वजह से इंसान को भयानक सज़ा भी दी है। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कहा “एक आदमी अकड़ रहा था चलने में, अपनी चादरों में, और इतरा रहा था तो अल्लाह ने उसे ज़मीन में धंसा दिया” (मुस्लिम: 5467)।
इस हालत पर क़ाबू पाया जा सकता है। बस इस के लिए ज़रूरी है कि इंसान में एक सोच, ख़ूबी और ख़ुसूसियत पाई जाए। यह है लोगों का उन की चाल ढाल में संतुलन, एतेदाल, बीच की राह, नर्मी, नम्रता और गरिमा व वक़ार का पाया जाना। यह ख़ूबी ईमान वालों में पाई जाती है। वे संतुलन को बनाए रखते हुए धीरे, इत्मीनान, गरिमा के साथ, आराम से चलते हैं। वे भागते दौड़ते, जूते बजाते, पैर मारते, घमंड के साथ और इतराते हुए नहीं चलते हैं। इसी लिए अल्लाह उन्हें पसंद करता है। अल्लाह ने उन्हें अपना बन्दा कहा है, “रहमान(दयालु) के (सच्चे) बन्दे वह हैं जो ज़मीन पर आहिस्ता और नम्रता से चलते हैं” (अल-फुरक़ान: 63)। एसी चाल जिस में न तेज़ी हो न सुस्ती, न घमंड व दिखावा हो न बनावट, न अकड़ हो न कमज़ोरी, बल्कि शांति,सकुन, संतुष्टि, इत्मीनान और वक़ार हो। एक हदीस में है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. “जब चलते, तो आगे की ओर झुके हुए होते जैसे कि आप सल्ल. ऊपर से नीचे उतर रहे हैं” (तिर्मिज़ी: 3637)। एक हदीस में है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. “जब चलते ज़मीन पर पैर जमा कर चलते” (तिर्मिज़ी:3638)। एक हदीस में, पैगंबर सल्ल. ने कहा “तेज़ चलना चेहरे की सुंदरता को ख़त्म कर देता है” (कंज़ अल-उम्माल:41614)।
इस्लाम में नमाज़ जैसी इबादत के लिए जाते वक़्त भी अपनी चाल को सुकून वाली और बीच की रखने पर ज़ोर दिया गया है। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कहा कि “जब नमाज़ शुरू हो जाए तो दौड़ कर न आओ, बल्कि चलते हुए सुकून से आओ और जो इमाम के साथ मिले पढ़लो और जो ना मिले उसे पूरा कर लो” (मुस्लिम: 1359)। हज करने के लिए जाते हुए भी रफ़्तार तेज़ करने से मना किया गया है। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कहा कि “लोगो! आहिस्तगी और मर्यादा को अपने ऊपर लाज़िम कर लो, (ऊँटों को) तेज़ी से दौड़ाना कोई नेकी नहीं है” (बुखारी: 1671)। रफ़्तार के संबंध में इस्लाम की इन शिक्षाओं के अनगिनत फायदों में से दो पहलू बहुत उभरे हुए हैं। इन पर अमल करने से इंसान घमंड, अकड़, दिखावे और ‘शो ऑफ़’ जैसी नफ़सीयाती बीमारी से बचा रहता है। उसे जान-माल का नुक़सान भी नहीं होता है। इस नुक़सान की वजह से वह इंसान जिस के साथ हादसा हुआ है, उस के घरवालों के साथ-साथ समाज, सरकारी और गैर-सरकारी वे एदारे और संस्थाएं भी जो हमेशा समाज को सुधारने की कोशिश करने में लगी रहती हैं वह भी बिना किसी कारण के बोझ से बच जाती हैं। यही वजह है की ज़रूरी है कि ईमान वाले इन शिक्षाओं पर अमल करके और ‘ज़मीन पर आहिस्ता और नम्रता से चलते हैं’ की ख़ूबी को अपनाते हुए ख़ुद भी परेशानियों और समस्याओं से बचें और साथ ही पूरी मानवता को भी बचाने की कोशिश करें।

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