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पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰)

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) और भारतीय...

सत्य हमेशा स्पष्ट होता है। उसके लिए किसी तरह की दलील की ज़रूरत नहीं होती। यह बात और है कि हम उसे न समझ पाएं या कुछ लोग हमें इससे दूर रखने का कुप्रयास करें। अब यह बात छिपी नहीं रही कि वेदों, उपनिषदों और पुराणों में इस सृष्टि के अंतिम पैग़म्बर (संदेष्टा) हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के आगमन की भविष्यवाणियां की गई हैं। मानवतावादी सत्यगवेषी विद्वानों ने ऐसे अकाट्य प्रमाण पेश कर दिए, जिससे सत्य खुलकर सामने आ गया है।वेदों में जिस उष्ट्रारोही (ऊंट की सवारी करनेवाले) महापुरुष के आने की भविष्यवाणी की गई है, वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही हैं। वेदों के अनुसार उष्ट्रारोही का नाम ‘नराशंस’ होगा। ‘नराशंस’ का अरबी अनुवाद ‘मुहम्मद’ होता है। ‘नराशंस’ के बारे में वर्णित समस्त क्रियाकलाप हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के आचरणों और व्यवहारों से आश्चर्यजनक साम्यता रखते हैं। पुराणों और......

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अन्तिम ऋषि

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)&‘अन्तिम’ईशदूत क्यों?एक बौद्धिक विश्लेषणइन्सान को ज़िन्दगी जीने के लिए जिस ज्ञान और मालूमात की ज़रूरत होती है, उसमें से काफ़ी हिस्सा उसकी पंचेन्द्रियों [Five Senses–देखना (आंख), सुनना (कान), सूंघना (नाक), चखना (जीभ), छूना (हाथ), के माध्यम से उसे हासिल होता है। इसके साथ उसे बुद्धि-विवेक भी प्राप्त है जिसके द्वारा वह चीज़ों का और अपनी नीतियों, कामों और फ़ैसलों आदि का उचित या अनुचित, लाभप्रद या हानिकारक होना तय करता है। धर्म में विश्वास रखने वाले (और न रखने वाले भी) लोग जानते-मानते हैं कि ये पंचेन्द्रियां (और बुद्धि-विवेक) स्वयं मनुष्य ने अपनी कोशिश, मेहनत, सामर्थ्य, इच्छा और पसन्द से नहीं बनाई हैं, बल्कि धर्म को माननेवाले लोगों का विश्वास है कि इन्हें ईश्वर ने बनाकर मनुष्य को प्रदान किया है। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया है और पंचेन्द्रियां व ......

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हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) विश्व नेता

किसी व्यक्ति को विश्व-नेता कहने के लिए कुछ मानदंड निर्धारित होने चाहिएँ और फिर उस व्यकित का, उन मानदंडों पर आकलन कर के देखना चाहिए कि वह उन पर पूरा उतरता है या नहीं। ● पहला मानदंड यह होना चाहिए कि उसने किसी विशेष जाति, वंश या वर्ग की भलाई के लिए नहीं, बल्कि सारे संसार के मनुष्यों की भलाई के लिए काम किया हो। एक देश-प्रेमी या राष्ट्रवादी नेता का आप इस रूप से जितना चाहें आदर कर लें कि उसने अपने लोगों की बड़ी सेवा की, किन्तु आप अगर उसके देशवासी या सजाति नहीं हैं तो वह किसी हालत में आपका नेता नहीं हो सकता। जिस व्यक्ति का प्रेम, शुभ-चिंता और कार्य सब कुछ चीन या स्पेन तक सीमित हो, एक हिन्दुस्तानी को उससे क्या संबंध कि वह उसे अपना नेता माने, बल्कि यदि वह अपनी जाति को दूसरों से श्रेष्ठ ठहराता हो और दूसरों को गिराकर अपनी जाति को उठाना चाहता हो तो दूसरे लोग उसे घृणा करने पर......

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हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) : प्रसिद्धतम...

‘‘यदि उद्देश्य की महानता, साधनों का अभाव और शानदार परिणाम—मानवीय बुद्धिमत्ता और विवेक की तीन कसौटियाँ हैं, तो आधुनिक इतिहास में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के मुक़ाबले में कौन आ सकेगा? विश्व के महानतम एवं प्रसिद्धतम व्यक्तियों ने शस्त्रास्त्र, क़ानून और शासन के मैदान में कारनामे अंजाम दिए। उन्होंने भौतिक शक्तियों को जन्म दिया, जो प्रायः उनकी आँखों के सामने ही बिखर गईं। लेकिन हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने न केवल फ़ौज, क़ानून, शासन और राज्य को अस्तित्व प्रदान किया, बल्कि तत्कालीन विश्व की एक तिहाई जनसंख्या के मन को भी छू लिया। साथ ही, आप (सल्ल॰) ने कर्मकांडों, वादों, धर्मों, पंथों, विचारों, आस्थाओं इत्यादि में बहुमूल्य परिवर्तन कर दिया।इस एकमात्र पुस्तक (पवित्र क़ुरआन) ने, जिसका एक-एक अक्षर क़ानूनी हैसियत प्राप्त कर चुका है, हर भाषा, रंग, नस्ल और प्रजाति के लोगों को ......

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मुहम्मद (सल्ल॰) : ईशदूत

● इस्लाम : एक सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्थापैग़म्बर मुहम्मद की शिक्षाओं का ही यह व्यावहारिक गुण है, जिसने वैज्ञानिक प्रवृत्ति को जन्म दिया। इन्हीं शिक्षाओं ने नित्य के काम-काज और उन कामों को भी जो सांसारिक काम कहलाते हैं आदर और पवित्रता प्रदान की। क़ुरआन कहता है कि इन्सान को ख़ुदा की इबादत के लिए पैदा किया गया है, लेकिन ‘इबादत’ (उपासना) की उसकी अपनी अलग परिभाषा है । ख़ुदा की इबादत केवल पूजा-पाठ आदि तक सीमित नहीं, बल्कि हर वह कार्य जो अल्लाह के आदेशानुसार उसकी प्रसन्नता प्राप्ति करने तथा मानव-जाति की भलाई के लिए किया जाए इबादत के अन्तर्गत आता है। इस्लाम ने पूरे जीवन और उससे संबद्ध सारे मामलों को पावन एवं पवित्र घोषित किया है। शर्त यह है कि उसे ईमानदारी, न्याय और नेकनियती तथा सत्य-निष्ठा के साथ किया जाए। पवित्र और अपवित्र के बीच चले आ रहे अनुचित भेद को मिटा दिया।......

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विश्वसनीय व्यक्तित्व (अल-अमीन)

● सुनहरे साधनइस्लाम का राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था से सीधा संबंध नहीं है, बल्कि यह संबंध अप्रत्यक्ष रूप में है और जहां तक राजनैतिक और आर्थिक मामले इन्सान के आचार-व्यवहार को प्रभावित करते हैं, उस सीमा में दोनों क्षेत्रों में निस्सन्देह उसने कई अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। प्रोफ़ेसर मेसिंगनन के अनुसार, ‘‘इस्लाम दो प्रतिवू$ल अतिशयों के बीच संतुलन स्थापित करता है और चरित्र-निर्माण का, जो कि सभ्यता की बुनियाद है, सदैव ध्यान रखता है।’’ इस उद्देश्य को प्राप्त करने और समाज-विरोधी तत्वों पर क़ाबू पाने के लिए इस्लाम अपने विरासत के क़ानून और संगठित एवं अनिवार्य ज़कात की व्यवस्था से काम लेता है। और एकाधिकार (इजारादारी Monopoly), सूदख़ोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर क़ब्ज़ा कर लेने, जमाख़ोरी (Hoarding) द्वारा बाज़ार का......

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हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) : महानतम...

● आत्म-संयम एवं अनुशासन‘‘जो अपने क्रोध पर क़ाबू रखते हैं......।’’ (क़ुरआन, 3:134)एक क़बीले के मेहमान का ऊँट दूसरे क़बीले की चरागाह में ग़लती से चले जाने की छोटी-सी घटना से उत्तेजित होकर जो अरबवासी चालीस वर्ष तक ऐसे भयानक रूप से लड़ते रहे थे कि दोनों पक्षों के कोई सत्तर हज़ार आदमी मारे गए, और दोनों क़बीलों के पूर्ण विनाश का भय पैदा हो गया था, उस उग्र क्रोधातुर और लड़ाकू क़ौम को इस्लाम के पैग़म्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा प्रशिक्षण दिया कि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज़ अदा करते थे। दूसरों के प्रति त्याग, क्षमादान, आदर, प्रेम, सहिष्णुता और उदारता के गुणों से उनके चरित्र व व्यवहार में निखार आ गया।● प्रतिरक्षात्मक युद्धविरोधियों से समझौते और मेल-मिलाप के लिए आपने बार-बार प्रयास किए, लेकिन जब सभी प्रयास बिल्कुल विफल हो गए और हालात ऐसे पैदा हो गए कि आपको केवल......

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इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)

मुहम्मद (सल्ल॰) का जन्म अरब के रेगिस्तान में मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार 20 अप्रैल, सन् 571 ई॰ हुआ। (सल्ल॰=‘सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम’ अर्थात् ‘हज़रत मुहम्मद पर अल्लाह की ओर से $कृपा व सलामती हो।’) ‘मुहम्मद’ का अर्थ होता है ‘जिस की अत्यंत प्रशंसा की गई हो।’ आप (सल्ल॰) अरब के सपूतों में महाप्रज्ञ और सबसे उच्च बुद्धि के व्यक्ति हैं। क्या आपसे पहले और क्या आपके बाद, इस लाल रेतीले अगम रेगिस्तान में जन्मे सभी कवियों और शासकों की अपेक्षा आपका प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है।जब आप पैदा हुए अरब उपमहाद्वीप केवल एक सूना रेगिस्तान था। मुहम्मद (सल्ल॰) की सशक्त आत्मा ने इस सूने रेगिस्तान से एक नए संसार का निर्माण किया, एक नए जीवन का, एक नई संस्कृति और नई सभ्यता का। आपके द्वारा एक ऐसे नए राज्य की स्थापना हुई, जो मराकश से लेकर इंडीज़ तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों-एशिया,......

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पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के...

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के प्रभाव अगण्य और अनंत हैं, जो मानव स्वभाव, मानव-चरित्र, मानव समाज और मानव सभ्यता-संस्कृति पर पड़े। ये प्रभाव सार्वकालिक हैं और अब तो सार्वभौमिक हो चुके एवं होते ही जा रहे हैं। उनमें से कुछ पिछली पंक्तियों में ‘‘अद्भुत, अद्वितीय क्रान्ति’’ के उपशीर्षक के तहत उल्लिखित किए गए; कुछ, संक्षेप में यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं:● विशुद्ध एकेश्वरवादी धारणा ने अनगिनत अच्छाइयाँ और सद्गुण, सदाचार उत्पन्न किए, उनको उन्नति दी और बहुदेववाद से उपजी अनगिनत बुराइयों, अपभ्रष्टताओं, पापों आदि को मिटते हुए, दुनिया ने देखा और मानव-समाज इस परिस्थिति से लाभान्वित हुई। ● मानव-बराबरी (Human Equality) का कहीं अता-पता न था। आज भी ‘नाबराबरी’ की लानत से दुनिया जूझ रही है। आपकी शिक्षाओं का ही प्रभाव है जो संसार इन्सानी बराबरी की पुण्य अवधारणा से अवगत......

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हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)

जीवन, चरित्र, सन्देश, क्रान्ति●जीवनी ● चरित्र ● पैग़म्बरी (ईशदूतत्व) ● अनुकूल व प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ ● विरोध, यातना, क्रूरता, अत्याचार, प्रताड़ना की परिस्थिति ● बहिष्कार (बॉयकाट) ● मक्का से बाहर इस्लाम का पैग़ाम ● मदीना में इस्लाम का प्रचार ● पैग़म्बर की हत्या का फ़ैसला ● मदीना को प्र्रस्थान (हिजरत) ● मदीना में भव्य स्वागत ● मक्कावासियों की धमकी ● युद्ध-और बार-बार युद्ध ● युद्ध क्यों? रक्तपात क्यों? ● अद्भुत, अद्वितीय क्रान्ति ● कुछ आम शिक्षाएँ ● शिष्टाचार की शिक्षा ● पैग़म्बर (सल्ल॰) की शिक्षाओं के प्रभाव ● मुस्लिम समाज पर प्रभावइस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰), अत्यंत लम्बी ईशदूत-श्रृंखला में एकमात्र ईशदूत हैं जिनका पूरा जीवन इतिहास की पूरी रोशनी में बीता। इस पहलू से भी आप उत्कृष्ट हैं कि आपकी पूरी ज़िन्दगी का विवरण, विस्तार के साथ शुद्ध, विश्वसनीय......

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हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के जीवन-आचरण का...

● ईश्वरीय मार्गदर्शन की ज़रूरत ● नबियों की पैरवी की ज़रूरत ● मुहम्मद (सल्ल॰) के सिवा दूसरे नबियों से हिदायत न मिलने का कारण ● यहूदी धर्म के ग्रंथों और नबियों का हाल ● हज़रत ईसा और ईसाई धर्म की किताबों का हाल ● ज़रदुश्त का जीवन-आचरण और शिक्षाओं का हाल ● बौद्ध धर्म की स्थिति ● वैदिक धर्म की स्थिति ● सिर्प़$ मुहम्मद (सल्ल॰) का जीवन-आचरण और शिक्षाएँ सुरक्षित हैं ● कु़रआन का अति सुरक्षित ईश-ग्रंथ होना ● रसूल (सल्ल॰) के जीवन-आचरण की प्रामाणिकता ● मुहम्मद (सल्ल॰) की ज़िन्दगी का हर पहलू स्पष्ट और मालूम है ● मुहम्मद (सल्ल॰) का सन्देश तमाम इन्सानों के लिए है ● रंग व नस्ल की संकीर्णताओं का बेहतरीन इलाज ● ईश्वर के एक होने की व्यापक धारणा ● ‘रब’ की बन्दगी का आह्वान ● रसूल के आज्ञापालन का आह्वान ● अल्लाह के बाद आज्ञापालन का अधिकारी अल्लाह का रसूल है ● आज़ादी का सच्चा चार्टर ● ख़ुदा......

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पैग़म्बर मोहम्मद (स0) की मुहर

      पैग़म्बर मोहम्मद (स0) के कथन-संग्रह 'हदीस’ की किताब 'मुस्लिम’ की हदीस संख्या 2092 के अनुसार:जब पैगम्बर (स0) ने रोम (बाज़न्तीन) के सम्राट को संबोधित करके उसे पत्र भेजने क इरादा किया तो आप (स0) को सु़झाव दिया गया कि सम्राट पत्र को जब ही पढे़गा जब उसकी विश्वसनीयता एवं आधिकारिकता के पुष्टीकरण स्वरूप उस पर मुहर लगी हो। पैग़म्बर (स0) ने इस उद्वेश्य से चांदी की एक अंगूठी बनवाई जिस पर उस मुहर की लिपि खुदी हुई थी।मुहर में ऊपर ’अल्लाह’ शब्द लिखा गया, उसके नीचे रसूल शब्द और उसके नीचे आप (स0)  का नाम ’मुहम्मद’। अरबी लिपि को पाठन शैली में शब्दों के इस समूह को “मुहम्मद, अल्लाह के रसूल”। रसूल को अर्थ होता है, ‘दूत’  या ‘प्रेषित’ रसूल अल्लाह का अर्थ हुआ ‘ईशदूत’ या ‘ईश-प्रेषित’। बाज़न्तीन (Byzantine) के सम्राट को लिखे गए पत्र पर नीचे यह मुहर लगाई गई। अन्य......

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