इस्लाम के त्रुटिरहित स्रोत (क़ुरआन एवं सुन्नत)

इस्लाम के त्रुटिरहित स्रोत (क़ुरआन...

1. इस्लामी आस्था, इस्लामी शरीअत, इस्लामी आचार व व्यवहार और इस्लामी कल्पना व मापदंडों का प्रमुख स्रोत केवल क़ुरआन है। यह ऐसा सुरक्षित स्रोत है जिसमें असत्य और झूठ प्रवेश नहीं पा सकते। इसी स्रोत की कसौटी पर दूसरे तमाम स्रोतों की परख होती है, यहां तक कि सुन्नत की परख भी क़ुरआन द्वारा ही साबित होती है।

अल्लाह और रसूल (सल्ल॰) पर ईमान रखने वाला हर मुसलमान चाहे वह किसी भी मसलक या फ़िरक़े से सम्बन्ध रखता हो, क़ुरआन के अटल एवं अन्तिम ईश-ग्रंथ होने से, इसकी नियमबद्धता से, किसी भी त्रुटि या वृद्धि के द्वारा इसमें परिवर्तन से इसके सुरक्षित होने में कोई मतभेद नहीं रखता। इस एकता में सुन्नी, जाफ़री, ज़ैदी और इबादी सब एक साथ हैं।

क़ुरआन तमाम मुसलमानों की किताब है। अल्लाह ने इसे विशेष रूप से स्पष्ट, आसान और सुरक्षित बनाया है

“और हमने तुम्हारी ओर ऐसा प्रकाश भेज दिया है जो तुम्हें साफ़-साफ़ रास्ता दिखाने वाला है। (क़ुरआन, 4:175)

“हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिए सहज साधन बना दिया है, फिर क्या है कोई नसीहत क़बूल करने वाला?’’ (क़ुरआन, 54:17)

“रहा यह अनुस्मारक—तो इसको हमने उतारा है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं।                                           

(क़ुरआन, 15:9)

अल्लाह ने क़ुरआन को अरबी भाषा में अवतरित किया है और इसे निर्णायक (फ़ैसला, क़ानून) बनाया है। अर्थात इसकी भाषा अरबी है किन्तु यह अपने विषय और दृष्टिकोण के अनुसार विश्वव्यापी है। जैसा कि अल्लाह ने फ़रमाया है

“बहुत ही बरकत वाला है वह जिसने यह फ़ुरक़ान (कसौटी) अपने बन्दे पर अवतरित किया ताकि सारे संसार वालों के लिए सावधान करने वाला हो।” (क़ुरआन, 25:1)

इसलिए तमाम मुसलमानों का दायित्व है कि दुनिया की विभिन्न भाषाओं में इसका अनुवाद करें ताकि अल्लाह के बन्दों तक अल्लाह का सन्देश पहुंच सके, और मुस्लिम उम्मत इस्लाम के सन्देश को न पहुंचाने के आरोप से मुक्त हो सके और दुनिया के सामने इस्लाम के सन्देश का विश्वव्यापी होना सिद्ध हो जाए।

2. क़ुरआन के बाद सुन्नत ही इस्लाम का दूसरा स्रोत है। यह स्रोत सहाबियों (रसूल सल्ल॰ के साथियों) और रसूल (सल्ल॰) के घर वालों के द्वारा विश्वसनीय तरीक़ें से हम तक पहुंचा है। अल्लाह ने अपने रसूल (सल्ल॰) को यह दायित्व भी दिया था कि वे लोगों के लिए क़ुरआन की व्याख्या व वर्णन करें।

“और अब यह अनुस्मरण तुम पर अवतरित किया है ताकि तुम लोगों के सामने उस शिक्षा की व्याख्या और स्पष्टीकरण करते जाओ जो उनके लिए उतारी गई है।                                 

(क़ुरआन, 16:44)

इसलिए क़ुरआन सारे विश्व के लिए अल्लाह का सन्देश और सन्मार्ग का प्रतिनिधि है और सुन्नत अर्थात रसूल (सल्ल॰) के कथन, कर्म और मौन स्वीकृति लोगों के लिए क़ुरआन की व्याख्या और वर्णन का प्रतिनिधित्व करती है। सुन्नत कभी क़ुरआन के मूल्यों की विस्तार से व्याख्या करती है और कभी इसके सामान्य वर्णन को विशिष्ट रूप से बयान करती है।

अल्लाह ने अपने रसूल की आज्ञापालन का भी आदेश दिया है क्योंकि रसूल अपनी इच्छा से कुछ नहीं बोलते। इसलिए रसूल की आज्ञा का पालन करना अल्लाह ही की आज्ञापालन का अंश है। जैसा कि अल्लाह फ़रमाता है

“जिसने रसूल की आज्ञा मानी उसने वास्तव में अल्लाह की आज्ञा का पालन किया।                                         

(क़ुरआन, 4:80)

इसी लिए अल्लाह ने अपने और अपने रसूल के आज्ञापालन को साथ-साथ बताते हुए दोनों के आज्ञापालन पर सन्मार्ग और ईशप्रेम को निर्भर ठहराया है। इसलिए फ़रमाया—

“कहो, अल्लाह के आज्ञाकारी बनो और रसूल के आदेशाधीन बनकर रहो क्योंकि यदि तुम मुंह फेरते हो तो भली-भांति समझ लो कि रसूल पर जिस कर्तव्य का भार रखा गया है उसका ज़िम्मेदार वह है और तुम पर जिस कर्तव्य का बोझ डाला गया है उसके ज़िम्मेदार तुम। उसकी आज्ञा का पालन करोगे तो स्वयं ही मार्ग पाओगे।” (क़ुरआन, 24:54)

“हे नबी, लोगों से कह दो कि यदि तुम वास्तव में अल्लाह से प्रेम करते हो, तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह तुम से प्रेम करेगा और तुम्हारी ख़ताओं को क्षमा कर देगा।                                 

(क़ुरआन, 3:31)

सुन्नत के बिना क़ुरआन को पूर्ण और शुद्ध रूप से समझना सम्भव नहीं है। चाहे ये सुन्नतें रसूल (सल्ल॰) के कथन हों, जैसा कि अधिकतर सुन्नते हैं या वे रसूल (सल्ल॰) के कर्म हों जैसा कि नमाज़ और हज से सम्बन्धित सुन्नत के विवरण हैं। नमाज़ और हज से सम्बन्धित तमाम सुन्नतें रसूल (सल्ल॰) से निरन्तर साबित हैं।

इसी तरह सुन्नत को क़ुरआन से अलग करके सही ढंग से नहीं समझा जा सकता है इसलिए सुन्नत को क़ुरआन के सन्दर्भ और उसकी रौशनी ही में समझना ज़रूरी है।

सुन्नत क़ुरआन की व्याख्या है और उसके अनुकूल है, इसमें सभी इस्लामी मसलक और मकतब सहमत हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है कि क़ुरआन और सुन्नत दोनों का बोध क़ुरआन के अवतरण और हदीसों की भाषा के अनुसार और उन नियम व सिद्धान्तों के अनुरूप हो, जिनके आधार व बुनियाद की खोज एवं शोध दीन के विद्वानों ने और विशेष रूप से फ़िक़्ह (धर्म-विधान) के विशेषज्ञों ने की हैं। इनमें से अधिकतर सिद्धान्तों पर सभी सहमत हैं, बहुत कम नियम व सिद्धान्त ऐसे हैं जिनमें मतभेद हुए हैं।

 

शरीअत के दूसरे स्रोत जैसे इजमाअ (सर्वसम्मति), क़ियास (आकलन), अक़्ल, इस्तिस्लाह (सुझाव), इस्तिहसान (अच्छा समझना), उर्फ़ (प्रचलित), शराया-ए-साबिक़ा (पिछली शरीअतों के नियम) और इस्तिस्हाब (सीख), इन सबके तर्क भी इस्लाम के दोनों बुनियादी स्रोत क़ुरआन और हदीस से ही लिए गए हैं।

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