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अंधेरे से उजाले की ओर

अंधेरे से उजाले की ओर

 वर्तमान युग की ‘पूर्ण भौतिकवादी’ सभ्यता की अत्यंत तेज़ व चमकीली रौशनी के चकाचौंध और भोग-विलास की मादकता में, आमतौर पर जीवन व्यतीत करने का सही रास्ता निगाह से ओझल हो गया है; यहाँ तक कि लोग ‘सही रास्ता’ की ज़रूरत ही महसूस नहीं करते। जिस भी रास्ते पर चलने को मन खींच लाया, बस उसी पर चल पड़े। वह रास्ता कामयाबी की मंज़िल पर पहुँचाएगा या तबाही की मंज़िल पर, इसकी कोई चिन्ता नहीं; मानो इन्सान इन्सान नहीं, बे-नकेल जन्तु है। लेकिन ईश्वर ने मनुष्यों की सृष्टि में चेतना और विवेक का गुण भी रखा है। इस गुण को प्रदूषित, जर्जर या विनष्ट कर देने वाले अवगुणों की पूरी लपेट में इन्सान आ न चुका हो तो उसकी अन्तरात्मा सत्य मार्ग को पाने के लिए व्याकुल अवश्य रहती है, और प्रायः मनुष्य को सत्य की खोज के लिए प्रयत्नशील बनाती रहती है।यह एक वैश्विक तथ्य (Global Phenomenon) है तथा भारतवर्ष भी इसका एक विशाल......

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अल्लाह रखा रहमान

(A. R. Rahman)(प्रसिद्ध, ऑस्कर अवार्ड'-पुरस्कृत संगीतकार,जन्म 6 जनवरी 1966, चेन्नई, तमिलनाडु)यह 1989 की बात है जब मैंने और मेरे परिवार ने इस्लाम स्वीकार किया। मैं जब 9 साल का था तब ही एक रहस्यमयी बीमारी से मेरे पिता गुज़र गए थे। ज़िन्दगी में कई मोड़ आए। वर्ष 1988 की बात है जब मैं मलेशिया में था। मुझे सपने में एक बुज़ुर्ग ने इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा। पहली बार मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन यही सपना मुझे कई बार आया। मैंने यह बात अपनी माँ को बताई। माँ ने मुझे प्रोत्साहित किया और कहा कि मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर के इस बुलावे पर ग़ौर और फ़िक्र करूँ। इस बीच 1988 में मेरी बहन गंभीर रूप से बीमार हो गई। परिवार की ओर से इलाज की पूरी कोशिशों के बावजूद उसकी बीमारी बढ़ती ही चली गई। इस दौरान हमने एक मुस्लिम धार्मिक रहबर की अगुआई में अल्लाह से दुआ की। अल्लाह ने हमारी सुन ली और आश्चर्यजनक रूप से......

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डॉक्टर कमला सुरैया

डॉक्टर कमला सुरैया(भूतपूर्व ‘डॉक्टर कमला दास')-सम्पादन कमेटी ‘इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इण्डिया' से संबद्ध-अध्यक्ष ‘चिल्ड्रन फ़िल्म सोसाइटी'-चेयरपर्सन ‘केरल फॉरेस्ट्री बोर्ड'-लेखिका, कवियत्री, शोधकर्ता, उपन्यासकार-केन्ट अवार्ड, एशियन पोएटरी अवार्ड, वलयार अवार्ड, केरल साहित्य अकादमीअवार्ड-पुरस्कृतकेरल, जन्म-1934 ई॰इस्लाम-ग्रहण-12 दि॰ 1999 ई॰ ‘‘दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है, इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन है, इस्लाम जो सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था है, और मैंने यह फै़सला भावुकता या सामयिक आधारों पर नहीं किया है, इसके लिए मैंने एक अवधि तक बड़ी गंभीरता और ध्यानपूर्वक गहन अध्ययन किया है और मैं अंत में इस नतीजे पर पहुंची हूं कि अन्य असंख्य ख़ूबियों के अतिरिक्त इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है और मैं इसकी बड़ी ही ज़रूरत महसूस करती ......

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आमिना थॉमस

(भूतपूर्व ‘अन्नम्मा थॉमस')ईसाई पादरी की बेटीकेरल, भारत मैं दक्षिणी भारत के एक प्रोटेस्टेंट ईसाई घराने में पैदा हुई और पली-बढ़ी। लेकिन अब मैं बहुत ख़ुश हूं कि मैं एक मुस्लिम औरत हूं। केवल संयोगवश मुसलमान नहीं बनी, बल्कि ख़ूब सोच-समझकर मैंने इस्लाम का चयन किया है। संसार के पालनहार, जिसने सही रास्ते अर्थात् इस्लाम की ओर मेरा मार्गदर्शन किया, उसका मैं जितना भी शुक्र अदा करूं, कम है। मेरा इस्लाम क़बूल करना विभिन्न धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन का परिणाम है। तुलनात्मक अध्ययन ने मेरे मन-मस्तिष्क को क़ायल किया कि इस्लाम ही एक सच्चा धर्म है और अल्लाह का अन्तिम धर्म है। इस्लाम के संबंध में मेरा अध्ययन जारी था कि बेहतर भविष्य के लिए मैं सऊदी अरब गई। यहां मैंने मुसलमानों और उनकी जीवनशैली का बहुत क़रीब से निरीक्षण किया। सऊदी अरब में मुझे धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन......

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मुहम्मद उमर गौतम

(वरिष्ठ विद्वान, समाज-सेवक,जन्म 1964, ज़िला फ़तहपुर, उ॰प्र॰) ‘‘...पन्द्रह साल की उम्र में मेरे मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा कि हमारे घर और ख़ानदान में जो पूजा-पाठ का तरीक़ा चल रहा है और मूर्ति-पूजा हो रही है वह कहाँ तक उचित है। हमें पन्द्रह साल की उम्र तक यह नहीं बताया गया था कि हम हिन्दू हैं तो क्यों हैं और हमारी आस्था व विश्वास (ईमान और यक़ीन) क्या है......हमारा स्रष्टा, स्वामी, पालनहार कौन है? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? मरने के बाद कहाँ पहुँचेंगे? किस की पूजा की जाए, किसकी न की जाए? 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा कैसे की जाए? 86 लाख योनियों में आवागमन कैसे संभव है?.... समाज में अपने ही जैसे मनुष्यों को अछूत बना दिया गया है....आदि, आदि।1984 में पढ़ाई के लिए हॉस्टल में रहने के दौरान स्कूटर से मेरे साथ एक दुर्घटना हुई। मेरे एक सहपाठी व सहवासी मित्र ने मेरी बहुत सेवा की। ....मैंने उनसे......

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अब्दुल्लाह सिद्दीक़

(भूतपूर्व ‘अनिल कुमार') लेक्चरर,हिन्दी विभाग,जे॰एम॰आई॰ विश्वविद्यालय,जन्म 1962 ‘‘मेरे नाना आर्य समाजी, दादा सनातनी और माता-पिता ‘राधास्वामी' सम्प्रदाय के थे। ....1978 में, जबकि मेरी उम्र 16 साल थी, रेलगाड़ी में सफ़र कर रहा था, देखा एक बुज़ुर्ग अपने साथियों को (इस्लामी) धार्मिक क़िस्से सुना रहे थे। मैंने उनसे एक साथ बहुत सारे प्रश्न कर डाले। ‘आप गाय का मांस क्यों खाते हैं। नमाज़ पढ़ते हैं तो इतना चिल्लाते क्यों हैं (उस वक़्त मैं अज़ान और नमाज़ में फ़र्व़$ नहीं जानता था)। आप (धार्मिक त्योहारों और रोज़ा आदि के लिए) चांद को क्यों देखते हैं, क्या आपका ख़ुदा चांद पर (रहता) है?....आदि। उन्होंने मुझे अपने घर आने का न्योता दिया। ....वु$छ दिनों बाद मैं डरते-डरते उनके घर गया। मुझे क़ुरआन का अनुवाद सुनाया गया और उसकी व्याख्या भी की गई....।''‘‘1976 में बहन की शादी हुई तो देखा कि इसमें संसाधनों......

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डॉ॰ मुहम्मद मोती लाल

डॉ॰ मुहम्मद मोती लाल(भूतपूर्व—‘डॉ॰ मोती लाल’)(एम॰बी॰बी॰एस॰, एम॰एस॰)जन्म 3 सितम्बर 1967, ज़िला बांदा, उ॰प्र॰ मैं बपचन से ही धार्मिक मानसिकता रखता था। राम-राम लिखा करता था। नव-दुर्गे में रामचरित्रामानस का पाठ दिया करता था। एम॰बी॰बी॰एस॰ के शुरुआती दौर में रामकृष्ण कथा में हर शनिवार को जाया करता था...वहाँ मौजूद संन्यासियों से भेंट भी करता था लेकिन उनके सामने कोई जीवन-उद्देश्य न होता था इसलिए कोई भी, संतुष्ट न कर सका। इसी बीच मैं ईसा-मसीह की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित हुआ, लेकिन उस में मुझे कोई आदर्श नज़र न आया। (सच्चाई की) तलाश जारी रही। एक सहपाठी ने मुझे ‘इस्लाम धर्म’ नामक पुस्तक दी। फिर मैंने लगातार बहुत सारी पुस्तके पढ़ डालीं। फिर यह बात समझ में आ गई कि यही वह जीवन-व्यवस्था है जिसका अनुपालन हमें करना चाहिए, लेकिन मैंने यह बात किसी को बताई नहीं। ......

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फ़िरदौस

 (भूतपूर्व ‘सोनिया जैन')जन्म 2 जून 1975,दिल्ली मैं अपनी माँ और संबंधियों के साथ जैन मंदिर जाया करती थी जहाँ हम सब पाठ में शरीक होते, पूजा करते, परिक्रमा करते। हमारी परम्परा पूरी, जैनी थी; किसी दूसरी परम्परा की कुछ भी जानकारी न थी। फिर भी जैन मंदिरों में हमारे रिश्तेदार जब बिल्कुल नंगे साधुओं के चरण छूते तो मैं हमेशा उसे नफ़रत से देखती, मेरी निगाहें शर्म से ज़मीन में गड़ जातीं। लेकिन मैं चुप रहती। इसी तरह समय बीतता गया और मैं 19 साल की हो गई। मेरी माँ उन दिनों एक कंप्यूटर डिज़ाइनिंग एंड प्रॉसेसिंग कम्पनी में काम करती थीं जिसके मालिक एक मुस्लिम,......साहब थे (अब वह मेरे पति हैं)।मेरे और कम्पनी के मालिक के बीच मांसाहार के विषय पर बातें होने लगीं। उनके तर्कों को मैं रुचिपूर्वक सुनती। उनका यह नित्य कर्म था कि हर शुक्रवार को ऑफ़िस बंद करके क़ुरआन का पाठ करते। मुझे जिज्ञासा......

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अबसार-उल-हक़

  (भूतपूर्व ‘क्षितिज’)बी॰एस॰सी॰, एम॰सी॰ए॰, जन्म 1982  इलाहाबाद के एक देहात से मेरा तअल्लुक़ है। पढ़ाई के दिनों में, एक पंडित जी......मेरे पिता जी के मित्र, मेरे घर पर आया करते थे और उनसे विभिन्न विषयों पर मेरी बातचीत होती रहती थी। उस समय इस्लाम से मुझे कोई रुचि न थी। एक बार पंडित जी ने यह विषय छेड़ा कि हम लोगों को अपना जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए। इस प्रश्न में मेरी रुचि बढ़ी। मैंने पंडित जी से पूछा तो वह टाल गए और मुझे लेकर बाहर गए। कुछ लोगों से मिलाया जो संभवतः इस्लामी संस्था......के लोग थे। उन्होंने मुझे अपने कार्यक्रम में आने को आमंत्रित किया। सन् 2000 से मैं उन कार्यक्रमों में सम्मिलित होने लगा। बी॰एस-सी॰ कर लेने के बाद उनमें बराबर शरीक होने लगा। इस बीच एक इस्लामी युवा संगठन......के सदस्यों से भी मिला और यदा-कदा इस्लामी विषयों पर वार्ता होती रही। आगे की पढ़ाई के लिए......

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मुहम्मद बिलाल

(भूतपूर्व ‘प्रमोद कुमार सिंह') मेरा संबंध ज़िला चम्पारन (बिहार) से है। मैंने 14, मार्च 2006 को इस्लाम क़बूल किया। मैं डच बैंक के सी॰सी॰ विभाग का हेड था। एक दिन एक व्यक्ति......ने मुझे फ़ोन किया, उसे मेरा नम्बर मेरे असिस्टेंट ने दिया था। आवाज़ बड़ी नर्म, मुलायम और आकर्षक थी। औपचारिक परिचय के बाद मुलाक़ात का वादा हो गया। भेंट हुई और मिलने का सिलसिला चल पड़ा। वह साहब कभी-कभी इस्लाम की बातें मुझे बताया करते थे, फिर मेरा उनके घर आना-जाना भी शुरू हो गया। उनके घर का वातावरण मुझे बहुत पसन्द आया।कुछ दिनों बाद ऐसी स्थिति आ गई कि मैंने उनसे कहा कि मैं इस्लाम धर्म स्वीकार करना चाहता हूं। उन्होंने मुझे समझाया कि अक़्ल का इस्तेमाल करें, पहले हिन्दू-मत का अध्ययन करें, फिर इस्लाम का। फिर अक़्ल जो फै़सला करे उसे स्वीकार करें। मैंने कहा कि अब मुझे किसी धर्म के अध्ययन की ज़रूरत नहीं है। फिर......

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नेल्सन मंडेला के पौत्र ने भी अपनाया...

दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत और दिवंगत राष्ट्रपति और वहां दशकों तक चले रंगभेद विरोधी अभियान में २७ वर्ष जेल काट चुके नेल्सन मंडेला को कौन नहीं जानता होगा? पूरी दुनिया में वह रंगभेद के विरुद्ध आंदोलनों का प्रतीक बन गए थे। पूरी दुनिया में उनका नाम बड़े आदर से लिया जाता है।ईसाई धर्म में आस्था रखने वाले मंडेला परिवार के साथ पूरी दुनिया उस समय आश्चर्यचकित रह गई जब २०१५ में उनके पौत्र मांडला मंडेला ने अपना धर्म परिवर्तित कर इस्लाम स्वीकार करने की घोषणा की। हर तरफ़ से उनकी निंदा की जाने लगी और उनपर दबाव बनाया गया की वह ईसाई धर्म में वापस आ जाएँ क्योंकि यही उनके परिवार और खानदान का धर्म रहा है। अभी यह चर्चा चल ही रही थी की एक दूसरी घोषणा ने लोगों को अत्यधिक हैरानी में दाल दिया। 6 फ़रवरी २०१६ को मांडला मंडेला ने एक मुसलमान युवती राबिया क्लार्क से विवाह कर लिया और......

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इस्लाम ने मुझे अपराधी जीवन से बचा लिया...

ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन शहर में 1981 में जन्में रॉबी मेस्त्रच्ची ने अपने अपराधी जीवन को पूर्ण रूप से उस समय तिल्लांजलि दे दी, जब आठ वर्ष पूर्व उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने का निर्णय किया। उनके जीवन का आरंभ ही समस्याओं से हुआ। जब वह सात वर्ष के थे तब उनके माँ-बाप में अलगाव हो गया और उनकी माँ उन्हें लेकर अमरीका चली गईं। माँ ने तो दूसरा विवाह कर लिया पर रॉबी वहां के ग़लत संगत में पड़कर ड्रग्स के आदी हो गए। माँ को जब इनकी बुरी आदत का ज्ञान हुआ, तो वह इन्हें लेकर ऑस्ट्रेलिया वापस आ गईं। उनका जीवन सुधारने के लिए माँ ने स्कूल में इनका नाम लिखा दिया, पर इनपर तो अमरीका वापस जाने की धुन सवार थी, इसलिए स्कूल जाना अधिक दिनों तक चल नहीं पाया। नौकरी करने का निर्णय लिया, पर शिक्षा के अभाव में अच्छी नौकरी संभव नहीं थी, इसलिए कुछ छोटे-मोटे काम करके ही समय काटना शुरू किया। ......

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